चौरी-चौरा काण्ड (Chauri Chaura Incident)
यह 5 फरवरी 1922 को गोरखपुर जिले (उ.प्र) के चौरी-चौरा के एक छोटे से गांव में हुआ। इस घटना ने इस गांव का नाम भारतीय इतिहास के पन्नों में सदैव के लिए दर्ज करा दिया। यह घटना इतनी महत्त्वपूर्ण थी कि गाँधी जी ने असहयोग आन्दोलन को स्थगित कर दिया । 4 फरवरी 1922 की रात पुलिस ने यहाँ स्वयं सेवक दलों के कुछ नेताओं को बुरी तरह पीटा, क्योंकि ये लोग शराब की बिक्री एवं खाद्यान्न के मूल्यों में हुई वृद्धि का विरोध करने हेतु प्रदर्शनकारियों का नेतृत्व कर रहे थे। इसके परिणामस्वरूप प्रदर्शनकारियों के एक जत्थे ने पुलिस पर हमला कर दिया। पुलिस ने गोली चलाई। पुलिस की गोलीबारी से सारे लोग उत्तेजित हो गए और पुलिस पर आक्रमण कर दिया। सिपाही भागकर थाने में घुस गए तो भीड़ ने थाने में आग लगा दी।
कुछ सिपाही भागने के प्रयास में बाहर आये उन्हें भीड़ ने मार डाला और पुनः आग में फेंक दिया। इस हिंसक घटना में 22 पुलिसकर्मी मारे गए। गाँघी जी इस घटना से अत्यन्त दुःखी हुए तथा उन्होंने तुरन्त आन्दोलन वापस लेने की घोषणा कर दी। फरवरी 1922 में बारदोली में कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक हुई। इस बैठक में एक प्रस्ताव पारित किया गया, जिसमें ऐसी सभी गतिविधियों पर रोक लगा दी गयी, जिनसे कानून का उल्लंघन होता हो। साथ ही प्रस्ताव में कई रचनात्मक कार्यों को प्रारम्भ करने की घोषणा भी की गयी । इनमें खादी को लोकप्रिय बनाना, राष्ट्रीय स्कूलों की स्थापना, शराब बन्दी के समर्थन में अभियान, अस्पृश्यता उन्मूलन हेतु अभियान तथा हिन्दू-मुस्लिम एकता को बल देने जैसे कार्यक्रम शामिल थे। राष्ट्रवादी नेताओं सी. आर. दास, मोतीलाल नेहरू, सुभाषचन्द्र बोस तथा जवाहर लाल नेहरू इत्यादि ने गाँधीजी के आन्दोलन वापस लेने के निर्णय पर अपनी असहमति प्रकट की । मार्च 1922 में गाँधी जी को गिरफ्तार कर 6 वर्ष के लिए जेल भेज दिया गया। गाँधी जी ने इस अवसर पर एक ऐतिहासिक भाषण में कहा कि ‘मैं यहाँ इसलिए आया हूँ क्योंकि मुझे यह अहसास हुआ कि कानून के उल्लंघन एवं विचारपूर्वक मैं यहाँ हिंसा के लिए मैं प्रसन्न होकर यहाँ सजा पा सकता हूँ और मुझे लगा की इस अवसर पर एक सच्चे नागरिक का यही प्रथम कर्तव्य है ।’