Quick Facts – Chandradhar Sharma Guleri
पूरा नाम | चन्द्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ |
जन्म तिथि | 7 जुलाई, 1883 ई० |
जन्म स्थान | पुरानी बस्ती, जयपुर, राजस्थान (भारत) |
मूल निवास | गाँव – गुलेर, कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश |
आयु | 39 साल |
पिता का नाम | पंडित शिवराम शास्त्री |
माता का नाम | श्रीमती लक्ष्मी देवी |
शिक्षा | • बी० ए० • एम० ए० |
कॉलेज/विश्वविद्यालय | • इलाहाबाद विश्वविद्यालय (स्नातक) • कोलकाता विश्वविद्यालय (स्नातकोत्तर) |
पेशा | लेखक, अध्यापक, पत्रकार |
प्रमुख्य रचनाएँ | • उसने कहा था, • बुद्धू का काँटा, • सुखमय जीवन, • कछुआ धर्म आदि। |
भाषा | संस्कृत, हिन्दी, अंग्रेज़ी, पालि, प्राकृत, आदि। |
नागरिकता | भारतीय |
मृत्यु तिथि | 12 सितम्बर, 1922 ई० |
मृत्यु स्थान | काशी (वाराणसी), उत्तर प्रदेश, भारत |
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जीवन परिचय – चन्द्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ (Chandradhar Sharma ‘Guleri’)
चंद्रधर शर्मा गुलेरी का जन्म 7 जुलाई 1883 ई० पुरानी बस्ती जयपुर (राजस्थान) में हुआ था, जो अब राजस्थान की राजधानी है। उनके पिता पंडित शिवराम शास्त्री हिमाचल प्रदेश के गुलेर गांव से थे। पंडित शिवराम शास्त्री एक सम्मानित विद्वान थे, जो राजा द्वारा सम्मानित होने के बाद जयपुर (राजस्थान) चले गए। उनकी तीसरी पत्नी लक्ष्मी देवी ने 1883 में चंद्रधर नाम का एक बच्चा पैदा किया। चंद्रधर ऐसे घर में पले-बढ़े जहाँ उन्होंने संस्कृत भाषा, वेद, पुराणों की शिक्षा ली, पूजा-पाठ, संध्या प्रार्थना और धार्मिक गतिविधियों में भाग लिया। बाद में उन्होंने अंग्रेजी भी सीखी।
चन्द्रधर शर्मा गुलेरी जी की शिक्षा
स्नातक की पढ़ाई करने के लिए इलाहाबाद चल दिये और इलाहाबाद विश्वविद्यालय से 3 साल पढ़ाई करके बी० ए० की डिग्री प्राप्त की। उन्होंने फिर से स्नातकोत्तर की पढ़ाई करने के लिए कोलकत्ता जा कर (कोलकाता विश्वविद्यालय) से एम० ए० की डिग्री प्राप्त की। हालाँकि वे पढ़ाई जारी रखना चाहते थे, लेकिन अपनी स्थिति के कारण वे ऐसा नहीं कर सके। हालाँकि, उन्होंने खुद से सीखना और लिखना जारी रखा। बीस साल की उम्र से पहले, उन्हें एक समूह का हिस्सा बनने के लिए चुना गया जो जयपुर वेधशाला को अपडेट करने और उससे संबंधित शोध करने पर काम कर रहा था। कैप्टन गैरेट के साथ मिलकर उन्होंने अंग्रेजी में “द जयपुर ऑब्जर्वेटरी एंड इट्स बिल्डर्स” नामक एक किताब लिखी। पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने 1900 में जयपुर में नागरी मंच की स्थापना में मदद की और 1902 में मासिक पत्रिका ‘समालोचक’ का संपादन शुरू किया। वैसे, वे कुछ वर्षों तक काशी में नागरी प्रचारिणी सभा के संपादक मंडल के सदस्य भी रहे। उन्होंने देवी प्रसाद इतिहास पुस्तक श्रृंखला और सूर्य कुमारी पुस्तक श्रृंखला पर काम किया। वे नागरी प्रचारिणी सभा के अध्यक्ष भी रहे।
वे शुरू में खेतड़ी के राजा जय सिंह के संरक्षक थे और बाद में जयपुर के कुलीन परिवारों के बेटों की देखभाल की, जब वे अजमेर के मेयो कॉलेज में पढ़ रहे थे। 1920 में, पंडित मदन मोहन मालवीय के प्रोत्साहन के कारण वे बनारस चले गए और काशी हिंदू विश्वविद्यालय में प्राच्य विद्या विभाग के प्रमुख बन गए। फिर, 1922 में, वे मनिंद्र चंद्र नंदी चेयर के प्रोफेसर भी बने, जो प्राचीन इतिहास और धर्म पर केंद्रित था। इसी दौरान उन्हें अपने परिवार में कई दुखद घटनाओं का सामना करना पड़ा। 12 सितंबर 1922 को 39 वर्ष की अल्पायु में पीलिया के कारण तेज बुखार से उनकी मृत्यु हो गई। छोटी सी उम्र में ही गुलेरी जी ने खुद ही पढ़ाई करके बहुत कुछ सीखा।
रचनाएँ (Rachnaye)
चंद्रधर जी निबंध लेखन के लिए प्रसिद्ध हैं। उन्होंने सौ से अधिक निबंध लिखे हैं। 1903 में, समालोचक पत्र की छपाई जयपुर में शुरू हुई और जैन वैद्य इसके संपादक थे। उन्होंने निबंध लिखकर और बड़े उत्साह के साथ टिप्पणियाँ करके समलोचक को आगे बढ़ाने में मदद की। चंद्रधर के निबंध के विषय मुख्य रूप से इतिहास, दर्शन, धर्म, मनोविज्ञान और पुरातत्व पर केंद्रित हैं।
- निबंध : संगीत, कच्छुआ धर्म, शैशुनाक की मूर्तियाँ, देवकुल, पुरानी हिन्दी, आँख, मोरेसि मोहिं कुठाऊँ।
- कविताएँ : ईश्वर से प्रार्थना, एशिया की विजय दशमी, भारत की जय, वेनॉक बर्न, आहिताग्नि, झुकी कमान, स्वागत, ।
- कहानी संग्रह : बुद्धु का काँटा, उसने कहा था, सुखमय जीवन ।
भाषा-शैली (Bhasha-Shaili)
चंद्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ की भाषा खड़ी बोली, हिन्दी, अंग्रेज़ी, पालि, प्राकृत थी। उन्होंने हिंदी में साहित्य सृजन किया और उनकी प्रमुख रचनाओं में “उसने कहा था” जैसी प्रसिद्ध कहानी शामिल है। उनकी भाषा शैली सरल, प्रभावी और बोलचाल की हिंदी पर आधारित थी, जो उनके समय में हिंदी साहित्य के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती थी।
चंद्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ की लेखन शैली में सरलता और गहरी भावनात्मक संलग्नता का मिश्रण था। उनकी कहानियों में अक्सर ग्रामीण भारतीय जीवन, संस्कृति और मूल्यों को दर्शाया जाता था। उन्होंने मानवीय भावनाओं और रिश्तों पर जोर दिया, साथ ही सामाजिक और नैतिक दुविधाओं की बारीकियों को भी पकड़ा। उनकी भाषा सीधी-सादी लेकिन गीतात्मक थी, जिससे उनकी कहानियाँ सुलभ और प्रासंगिक बन गईं। “उसने कहा था” उनकी शैली का एक बेहतरीन उदाहरण है, जहाँ वे मानवता की गहरी भावना के साथ प्रेम, त्याग और कर्तव्य के विषयों पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
Frequently Asked Questions (FAQs) About Chandradhar Sharma ‘Guleri’ Ka Jeevan Parichay:
Q. चंद्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ कौन थे?
चंद्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ एक प्रसिद्ध हिंदी लेखक, कवि, और निबंधकार थे, जिन्हें उनकी कहानी “उसने कहा था” के लिए विशेष रूप से जाना जाता है।
Q. ‘गुलेरी’ नाम का क्या अर्थ है?
‘गुलेरी’ चंद्रधर शर्मा का उपनाम था, जो संभवतः उनके स्थान या परिवार से संबंधित था। इसे उनके साहित्यिक पहचान के रूप में जाना जाता है।
Q. चंद्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ की प्रमुख रचनाएँ कौन-कौन सी हैं?
उनकी प्रमुख रचनाओं में “उसने कहा था” जैसी कहानियाँ शामिल हैं, जो हिंदी साहित्य की प्रारंभिक कालजयी कहानियों में से एक मानी जाती है।
Q. ‘उसने कहा था’ कहानी का क्या महत्व है?
“उसने कहा था” हिंदी साहित्य में एक प्रमुख स्थान रखती है क्योंकि यह प्रेम, त्याग और देशभक्ति की भावनाओं को बहुत संवेदनशील ढंग से प्रस्तुत करती है।
Q. चंद्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
उनका जन्म 7 जुलाई 1883 को जयपुर, राजस्थान में हुआ था।
Q. गुलेरी जी ने अपनी शिक्षा कहाँ से प्राप्त की?
उन्होंने संस्कृत और अंग्रेज़ी साहित्य में उच्च शिक्षा प्राप्त की थी। उनकी गहरी रुचि साहित्य, इतिहास और पुरातत्व में थी।
Q. चंद्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ के साहित्यिक योगदान का क्या प्रभाव है?
हिंदी साहित्य में चंद्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है। उनकी कहानियाँ हिंदी गद्य साहित्य के विकास में मील का पत्थर साबित हुई हैं।
Q. गुलेरी जी की भाषा शैली कैसी थी?
उनकी भाषा सरल, स्पष्ट और भावपूर्ण थी, जिसमें रोज़मर्रा के जीवन की सच्चाइयों को बहुत सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया गया है।
Q. चंद्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ का निधन कब हुआ था?
उनका निधन 12 सितंबर 1922 को हुआ था।
Q. गुलेरी जी को आज के समय में क्यों याद किया जाता है?
चंद्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ को उनकी उत्कृष्ट कहानियों और साहित्य में नवाचारों के लिए याद किया जाता है, खासकर “उसने कहा था” जैसी कालजयी रचना के कारण।