सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ का जीवन परिचय | Sachchidananda Hirananda Vatsyayan Ka Jivan Parichay

Written By The Biography Point

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Quick Facts – Sachchidananda Hirananda Vatsyayan

पूरा नामसच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’
उपनामअज्ञेय
जन्म तिथि7 मार्च 1911
जन्म स्थानकुशीनगर, उत्तर प्रदेश (भारत)
आयु76 साल
पिता का नामपण्डित हीरानंद शास्त्री
माता का नामश्रीमती व्यंतिदेवी
पत्नी का नामकपिला वात्स्यायन
शिक्षाबी०ए०, एम.ए. (अंग्रेज़ी)
कॉलेज/विश्वविद्यालय• क्रिश्चियन कॉलेज, मद्रास
• फ़ॉर्मन कॉलेज, लाहौर
पुरस्कार सम्मानित • भारतीय पुरस्कार,
• अंतर्राष्ट्रीय ‘गोल्डन रीथ’ पुरस्कार,
• साहित्य अकादमी पुरस्कार (1964),
• ज्ञानपीठ पुरस्कार (1978)
आदि।
पेशालेखक, कविता, निबन्ध, अनुवाद और यात्रा
रचनाएं• आँगन के पार द्वार
• कितनी नावों में कितनी बार
• क्योंकि मैं उसे जानता हूँ
• एक जीवनी’ आदि।
भाषा हिन्दी, अंग्रेजी
कालआधुनिक काल
धर्महिन्दू
जातिब्राह्मण
नागरिकताभारतीय
मृत्यु तिथि4 अप्रैल 1987
मृत्यु स्थाननई दिल्ली (भारत)

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अमरकांतडॉ० संपूर्णानन्दजयशंकर प्रसाद

जीवन परिचय – सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’

अज्ञेय के पिता पंडित हीरानंद शास्त्री पुरानी रचनाओं में बहुत कुशल थे। अपने पिता की नौकरी के कारण वे बचपन में बहुत घूमते रहे। अज्ञेय का जन्म 7 मार्च 1911 को कुशीनगर में हुआ था। 1919 में उनका परिवार लखनऊ, श्रीनगर और जम्मू का दौरा करने के बाद नालंदा गये। नालंदा में अज्ञेय के पिता ने उन्हें हिंदी में लिखना सिखाया। इसके बाद 1921 में अज्ञेय का परिवार ऊटी आ गया। ऊटी में अज्ञेय के पिता ने अज्ञेय के लिए एक विशेष समारोह आयोजित किया और उन्हें वात्स्यायन उपनाम दिया।

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ शिक्षा

अज्ञेय ने घर पर ही भाषा, कहानियाँ, इतिहास और विज्ञान सीखना शुरू किया। 1925 में, अज्ञेय ने पंजाब में अपने दम पर हाई स्कूल की परीक्षा दी और पास किया। उसके बाद, उन्होंने मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज में दो साल और फिर लाहौर के फॉर्मन कॉलेज में तीन साल तक पढ़ाई की। उन्होंने विज्ञान में स्नातक की डिग्री पूरी की। और मास्टर डिग्री ज़रूर। कृपया वह पाठ प्रदान करें जिसे आप सरल बनाना चाहते हैं। उसी समय, उनकी भगत सिंह से दोस्ती हो गई और 1930 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ कार्यकाल

छह साल जेल और नजरबंदी में बिताने के बाद अज्ञेय ने 1936 में कुछ समय तक आगरा के अखबार सैनिक की संपादकीय टीम में काम किया। फिर 1937 से 1939 तक विशाल भारत के संपादकीय विभाग में काम किया। कुछ समय तक ऑल इंडिया रेडियो में काम करने के बाद अज्ञेय 1943 में सेना में भर्ती हो गए। 1946 में सेना छोड़ने के बाद उन्होंने अपना पूरा ध्यान लेखन पर लगाया। उन्होंने मेरठ, फिर इलाहाबाद और अंत में दिल्ली को अपना मुख्य कार्यक्षेत्र चुना। अज्ञेय ने प्रतीक में बदलाव किए। प्रतीक ने आधुनिक हिंदी साहित्य में लेखकों और कवियों को एक मजबूत मंच प्रदान किया और साहित्यिक पत्रकारिता में एक नई पहचान बनाई। अज्ञेय 1965 से 1968 तक दिनमान नामक पत्रिका के संपादक रहे। उन्होंने 1973 में प्रतीक का नया संस्करण नया प्रतीक नाम से प्रकाशित करना शुरू किया और अपना अधिकांश समय लेखन में ही बिताया। 1977 में वे दैनिक अखबार नवभारत टाइम्स के संपादक बने। अगस्त 1979 में उन्होंने नवभारत टाइम्स में काम करना बंद कर दिया।

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सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ कृति

अज्ञेय के काम के कई पहलू हैं और वे उनके गहरे अनुभवों से निकले हैं। अज्ञेय के शुरुआती लेखन से पता चलता है कि उन्होंने लोगों को प्रेरित करने से बहुत कुछ सीखा, जबकि उनके बाद के लेखन में उनके अपने जीवन के अनुभव और विकास की झलक मिलती है। साथ ही, वे लोगों को इस बात से जुड़ने में मदद करते हैं कि भारतीय दुनिया को कैसे देखते हैं। अज्ञेय का मानना ​​था कि स्वतंत्रता लोगों के लिए बहुत महत्वपूर्ण मूल्य है, लेकिन उन्हें लगा कि स्वतंत्रता एक ऐसी चीज है जिस पर हमें काम करने और हर समय सोचने की जरूरत है। अज्ञेय ने खुद को अभिव्यक्त करने के लिए विभिन्न प्रकार के लेखन और कला का इस्तेमाल किया। इसमें कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक, यात्रा वृत्तांत, व्यक्तिगत निबंध, विचारों के बारे में निबंध, आत्म-चिंतन, अनुवाद, समीक्षा और संपादन शामिल हैं। उपन्यासों की दुनिया में, “शेखर” नामक जीवनी हिंदी साहित्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गई। उन्होंने नाटकीय संरचना का उपयोग करते हुए ‘उत्तर प्रियदर्शी’ लिखा, और संग्रह ‘आँगन के पार द्वार’ में वे विशाल से अधिक जुड़ने लगते हैं।

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ रचनाएँ

  • कविता भग्नदूत (1933)
  • चिंता (1942)
  • इत्यलम (1946)
  • हरी घास पर क्षण भर (1949)
  • बावरा अहेरी (1954)
  • आंगन के पार द्वार (1961)
  • पूर्वा (1965)
  • कितनी नावों में कितनी बार (1967)
  • क्योंकि मैं उसे जानता हूँ (1969)
  • सागर मुद्रा (1970)
  • पहले मैं सन्नाटा बुनता हूँ (1973)

निष्कर्ष

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ हिंदी साहित्य के प्रमुख लेखक, कवि, और विचारक थे। उनका साहित्यिक कद उन्हें हिंदी आधुनिक साहित्य के अग्रदूतों में गिना जाता है। अज्ञेय का साहित्य मानव मन की जटिलताओं, स्वतंत्रता और व्यक्तिवाद पर केंद्रित था। उनके प्रमुख काव्य संग्रहों में **’हरी घास पर क्षणभर’**, **’सदियों का संताप’**, और **’आँगन के पार द्वार’** शामिल हैं। उन्होंने अपने लेखन में प्रयोगवाद और नई कविता आंदोलन को दिशा दी। उनकी कहानियों और उपन्यासों ने सामाजिक यथार्थ और व्यक्तिगत चिंतन के नए आयाम प्रस्तुत किए। अज्ञेय ने ‘दूसरा सप्तक’ जैसी कृतियों के माध्यम से युवा कवियों को भी मंच प्रदान किया। उनकी साहित्यिक यात्रा स्वतंत्रता संग्राम, जेल जीवन, और आंतरिक संघर्षों से जुड़ी रही। 1980 में उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उनके विचारशील और प्रयोगधर्मी लेखन ने उन्हें हिंदी साहित्य में एक विशिष्ट स्थान दिलाया।

Frequently Asked Questions (FAQs) About Sachchidananda Hirananda Vatsyayan:

Q. अज्ञेय का पूरा नाम क्या था?
सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ उनका पूरा नाम था।

Q. अज्ञेय का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
अज्ञेय का जन्म 7 मार्च 1911 को उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले में हुआ था।

Q. अज्ञेय का प्रमुख योगदान किस क्षेत्र में है?
वे हिंदी साहित्य के प्रमुख कवि, कथाकार, निबंधकार और पत्रकार थे। उनका योगदान आधुनिक हिंदी कविता और कथा साहित्य में अत्यंत महत्वपूर्ण है।

Q. अज्ञेय की सबसे प्रसिद्ध कृति कौन सी है?
उनकी सबसे प्रसिद्ध रचनाओं में ‘शेखर: एक जीवनी’, ‘नदी के द्वीप’, और ‘अपने-अपने अजनबी’ शामिल हैं।

Q. अज्ञेय को किन पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था?
उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार और ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

Q. अज्ञेय किस साहित्यिक आंदोलन से जुड़े थे?
अज्ञेय प्रगतिशील साहित्यिक आंदोलन से जुड़े थे, लेकिन वे प्रयोगवाद और नई कविता के प्रमुख प्रवर्तक माने जाते हैं।

Q. अज्ञेय ने कौन-कौन से प्रमुख संपादकीय कार्य किए?
उन्होंने ‘प्रतीक’ नामक साहित्यिक पत्रिका का संपादन किया, जो आधुनिक हिंदी साहित्य के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

Q. अज्ञेय की मृत्यु कब हुई?
उनकी मृत्यु 4 अप्रैल 1987 को हुई थी।

Q. अज्ञेय की रचनाओं का प्रमुख विषय क्या था?
उनकी रचनाओं में मानव अस्तित्व, स्वतंत्रता, प्रेम, समाज और व्यक्ति के आंतरिक संघर्ष जैसे विषय प्रमुखता से आते हैं।

Q. अज्ञेय की लेखन शैली कैसी थी?
उनकी लेखन शैली गहरी संवेदनशीलता, मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण और नवीन प्रयोगधर्मिता से परिपूर्ण थी।

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