Quick Facts – Mohan Rakesh
पूरा नाम | मदन मोहन गुगलानी |
विख्यात नाम | मोहन राकेश |
जन्म तिथि | 8 जनवरी 1925 |
जन्म स्थान | अमृतसर, पंजाब (भारत) |
आयु | 47 साल |
माता का नाम | बचन (अम्मा) |
पिता का नाम | श्री कर्मचंद गुगलानी |
पत्नी का नाम | अनिता औलख |
भाई का नाम | वीरेंद्र गुगलानी |
बहन का नाम | कमला |
पेशा | लेखक और अध्यापक |
शिक्षा | एम० ए० (हिन्दी) |
कॉलेज/विश्वविद्यालय | पंजाब विश्वविद्यालय |
मुख्य रचनाऍं | • उपन्यास: अँधरे बंद कमरे • नाटक: आषाढ़ का एक दिन, लहरों के राजहंस, आधे अधूरे |
विधाएँ | • कहानी, • उपन्यास, • नाटक, • एकांकी, • यात्रा वृतांत, • अनुवाद, • डायरी लेखन आदि। |
संपादन | सारिका (पत्रिका) |
भाषा | हिन्दी , अंग्रेजी |
किस काल | आधुनिक काल |
नागरिकता | भारतीय |
मृत्यु तिथि | 3 दिसम्बर 1972 |
मृत्यु स्थान | दिल्ली (भारत) |
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जीवन परिचय – मोहन राकेश
मोहन राकेश का जन्म 8 जनवरी, 1925 को अमृतसर, पंजाब में हुआ था। वे एक प्रसिद्ध भारतीय लेखक थे जो अपने नाटकों, उपन्यासों और लघु कथाओं के लिए जाने जाते थे। वे आधुनिक हिंदी साहित्य को आकार देने वाले पहले लेखकों में से एक थे। वे जीवन के बारे में अपने विचारशील और गहरे विचारों के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने हिंदी रंगमंच और साहित्य के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, खासकर नई कहानी आंदोलन में एक प्रमुख व्यक्ति के रूप में। राकेश का काम भारतीय कहानी कहने की सामान्य शैली से परे था। उन्होंने वास्तविक जीवन की घटनाओं को लोगों के विचारों और भावनाओं की गहरी समझ के साथ जोड़ा, जो उनके समय के लिए नया और अभिनव था।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
मोहन राकेश का जन्म मदन मोहन गुगलानी के रूप में एक सामान्य पंजाबी परिवार में हुआ था। उनके परिवार को पैसों की समस्या थी, खासकर जब राकेश किशोर थे, तब उनके पिता की अप्रत्याशित मृत्यु हो गई थी। इन शुरुआती चुनौतियों ने उनके जीवन और खुद को व्यक्त करने के तरीके को लंबे समय तक प्रभावित किया। इन कठिनाइयों के बावजूद, राकेश में साहित्य के लिए एक मजबूत प्रतिभा थी। उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की और पंजाब विश्वविद्यालय से हिंदी और संस्कृत में मास्टर डिग्री हासिल की। शास्त्रीय भाषाओं के उनके ज्ञान ने उन्हें एक विशेष अंतर्दृष्टि और समझ दी, जिसे उन्होंने बाद में अपने लेखन में शामिल किया।
नई कहानी आंदोलन और साहित्यिक योगदान
राकेश 1950 के दशक में प्रसिद्ध हुए। उन्होंने नई कहानी आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसका उद्देश्य हिंदी साहित्य में पाई जाने वाली विशिष्ट रोमांटिक और स्वप्निल कहानियों से अलग हटकर आगे बढ़ना था। इस आंदोलन के लेखकों ने आधुनिक जीवन की चुनौतियों और कठिनाइयों को देखा, अपने पात्रों के आंतरिक संघर्षों की खोज की। उनकी लघु कहानियों में अक्सर व्यक्तिगत समस्याओं, जीवन के सवालों और सामाजिक दबावों से जूझ रहे आम लोगों के जीवन को दिखाया जाता था।
उनकी कुछ प्रसिद्ध लघु कथाएँ हैं “मलबे का मालिक” और “राजा निरबंसिया।” इन कहानियों में एक विचारशील मनोदशा, गहरे चरित्र हैं, और यह बताती हैं कि लोग कैसे सोचते और महसूस करते हैं। राकेश की कहानियों में नए और दिलचस्प विचार थे जो आज के लोगों के जीवन को दर्शाते हैं। इसने उन पाठकों को जोड़ा जो अपने अनुभवों से संबंधित किताबें चाहते थे।
नाट्य लेखन में परिवर्तन
मोहन राकेश को शायद भारतीय रंगमंच में उनके काम के लिए सबसे ज़्यादा जाना जाता है। उनके नाटक उनसे पहले आए अति नाटकीय और पूर्वानुमानित नाटकों से अलग थे। उन्होंने रंगमंच की एक नई शैली बनाई जो ज़्यादा विचारशील, सरल थी और गहरी भावनाओं और विचारों की खोज करती थी। उनका पहला बड़ा नाटक, आषाढ़ का एक दिन (बरसात का एक दिन), 1958 में प्रकाशित हुआ। इस नाटक ने हिंदी नाटक को बदल दिया और इसे हिंदी रंगमंच के सर्वश्रेष्ठ नाटकों में से एक माना जाता है। इसने 1959 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार जीता।
“आषाढ़ का एक दिन” प्रसिद्ध संस्कृत कवि कालिदास की कहानी है। यह दिखाता है कि वह रचनात्मक स्वतंत्रता की अपनी इच्छा को अपने निजी जीवन और अपने प्रियजनों के प्रति अपने कर्तव्यों के साथ कैसे संतुलित करने की कोशिश करता है। नाटक एक कलाकार के संघर्ष, अपनी कला के प्रति समर्पित होने के साथ आने वाले अकेलेपन और अक्सर किए जाने वाले कठिन त्यागों के बारे में बात करता है। कहानी में सफलता की चाहत, प्यार, विश्वासघात और त्याग करने के बारे में विचार शामिल हैं। यह जिम्मेदारियों और अपने दिल की बात मानने के बीच संघर्ष को दर्शाता है।
राकेश का एक और महत्वपूर्ण नाटक है लहरों के राजहंस (लहरों के हंस)। यह देवदत्त की कहानी बताता है, जो गौतम बुद्ध का चचेरा भाई है, और इच्छाओं को त्यागने, चीजों की चाहत रखने और जीवन में अर्थ खोजने के विचारों को देखता है। इस नाटक में राकेश ने जीवन के बड़े सवालों और लोगों के व्यक्तिगत संघर्षों को देखा। उन्होंने भारतीय रंगमंच में गहरे विचार जोड़े और लोगों से हमेशा की तरह अलग तरीके से सोचने का आग्रह किया।
1969 में आया उनका नाटक “आधे अधूरे” (अधूरा) उनकी एक और बेहतरीन कृति है। इसे अक्सर एक “अधूरे” परिवार की तस्वीर के रूप में देखा जाता है, जो आज के पारिवारिक जीवन में निराशा, टूटन और दूरी को दर्शाता है। यह नाटक सावित्री नामक एक अधेड़ उम्र की महिला के बारे में है, जो अपनी शादी से नाखुश है। वह दूसरे लोगों के साथ संबंध बनाकर खुशी पाने की कोशिश करती है। आधे अधूरे टूटे हुए पारिवारिक संबंधों और मध्यम वर्ग के शहरी लोगों द्वारा सामना की जाने वाली समस्याओं और निराशाओं की कठोर वास्तविकता को दर्शाता है। यह अपने मजबूत यथार्थवाद के लिए जाना जाता है और भारत और अन्य देशों में कई बार इसका प्रदर्शन किया जा चुका है।
शैली और प्रभाव
मोहन राकेश इस तरह से लिखते हैं कि वे अपने पात्रों के विचारों और भावनाओं को करीब से देखते हैं। वे सरल वार्तालापों का उपयोग करते हैं और अपनी कहानियों में सार्थक स्थान बनाना पसंद करते हैं। उनकी कहानियाँ और नाटक आमतौर पर एक सीधी रेखा के कथानक का अनुसरण नहीं करते हैं। इसके बजाय, वे पात्रों के विचारों और भावनाओं पर बहुत अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं, जिससे दर्शकों को विभिन्न तरीकों से गहरे अर्थों को समझने में मदद मिलती है। राकेश एंटोन चेखव, टेनेसी विलियम्स और आर्थर मिलर जैसे पश्चिमी लेखकों और नाटककारों से बहुत प्रेरित थे। इस प्रभाव ने उन्हें एक अनूठी लेखन शैली बनाने में मदद की जो उस समय भारतीय साहित्य में असामान्य थी।
उनका प्रभाव सिर्फ़ किताबों तक ही सीमित नहीं था; उन्होंने कई भावी हिंदी लेखकों और नाटककारों को प्रोत्साहित किया, जैसे कि प्रसिद्ध बादल सरकार और विजय तेंदुलकर। राकेश का काम वास्तव में उस समय के युवाओं से जुड़ा था। वे आज़ादी के बाद भारत में नए सामाजिक बदलावों और व्यक्तिवाद पर अधिक ध्यान केंद्रित करने का सामना कर रहे थे।
व्यक्तिगत जीवन और संघर्ष
मोहन राकेश का जीवन उनके द्वारा लिखे गए पात्रों के जीवन की तरह ही अस्त-व्यस्त था। उन्होंने कई व्यक्तिगत समस्याओं का सामना किया, जिसमें दो तलाक और हमेशा अकेलापन और पैसे की कमी महसूस करना शामिल था। राकेश का अपने परिवार और अपनी तीन पत्नियों के साथ एक मुश्किल रिश्ता था। वह अक्सर पढ़ने और लिखने से सुकून महसूस करते थे। उनकी व्यक्तिगत समस्याओं ने अक्सर उनके काम को प्रेरित किया क्योंकि उन्होंने उन्हें समाज में संघर्ष और अकेलेपन की भावनाओं की गहरी समझ दी।
हालाँकि उन्होंने एक लेखक के रूप में अच्छा काम किया, लेकिन उन्हें सिर्फ़ अपने लेखन से पर्याप्त पैसा कमाना मुश्किल लगा। उन्होंने पैसे कमाने के लिए अलग-अलग शिक्षण कार्य किए और पत्रिकाओं के लिए लिखा। उनकी पैसे की समस्या और व्यक्तिगत मुद्दों से जूझने के कारण उनकी असमय मृत्यु हो गई।
विरासत और मृत्यु
मोहन राकेश का निधन 3 दिसम्बर 1972 को हुआ, जब वे 47 वर्ष के थे। उनकी असमय मृत्यु ने एक प्रतिभाशाली लेकिन कठिन लेखन करियर का अंत कर दिया। उनका काम समय के साथ बना रहा और उनका प्रभाव आज भी हिंदी साहित्य और रंगमंच पर है। राकेश उन कुछ भारतीय नाटककारों में से एक के रूप में जाने जाते हैं जिन्होंने पूर्वी और पश्चिमी शैलियों का मिश्रण किया। उनकी रचनाएँ इसलिए खास हैं क्योंकि वे भारतीय संस्कृति को दर्शाती हैं और साथ ही सभी से जुड़ी हुई भी हैं।
लोग आज भी राकेश के नाटकों और कहानियों को पढ़ते हैं, उनका प्रदर्शन करते हैं और उन्हें पसंद करते हैं। हिंदी लेखन और रंगमंच समुदाय मानव मन को समझने के लिए उनके दृढ़ समर्पण, हिंदी साहित्य को अद्यतन करने के उनके प्रयासों और आधुनिक जीवन की कठिन सच्चाइयों का सामना करने की उनकी बहादुरी के लिए उनकी प्रशंसा करता है।
निष्कर्ष
मोहन राकेश भारतीय रंगमंच और साहित्य में सबसे प्रभावशाली व्यक्तियों में से एक हैं। उनके नाटक, उपन्यास और लघु कथाएँ आधुनिक हिंदी साहित्य के यथार्थवाद, आत्मनिरीक्षण और सामाजिक आलोचना की ओर बदलाव का सार प्रस्तुत करती हैं। आषाढ़ का एक दिन, आधे अधूरे और लहरों के राजहंस जैसी रचनाओं के माध्यम से, उन्होंने व्यक्तिगत स्वतंत्रता, पारिवारिक कलह और प्रेम और महत्वाकांक्षा की जटिलताओं सहित सार्वभौमिक रूप से प्रतिध्वनित होने वाले विषयों की खोज की। उनकी अग्रणी दृष्टि ने हिंदी रंगमंच को नया रूप दिया और भारतीय कहानी कहने पर एक स्थायी प्रभाव छोड़ा, जिससे वे आधुनिक भारतीय साहित्य के एक सच्चे प्रतीक बन गए।
Frequently Asked Questions (FAQs) About Mohan Rakesh Biography In Hindi
Q. मोहन राकेश कौन थे?
मोहन राकेश एक प्रमुख हिंदी लेखक और नाटककार थे, जिन्होंने हिंदी साहित्य में नई कहानी आंदोलन को बढ़ावा दिया। उनके नाटक और कहानियाँ सामाजिक और मानसिक यथार्थ पर आधारित हैं।
Q. मोहन राकेश का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
मोहन राकेश का जन्म 8 जनवरी 1925 को अमृतसर, पंजाब में हुआ था।
Q. उनके सबसे प्रसिद्ध नाटकों में कौन से नाटक शामिल हैं?
उनके प्रसिद्ध नाटकों में आषाढ़ का एक दिन, लेहरों के राजहंस, और आधे-अधूरे शामिल हैं।
Q. मोहन राकेश की कौन सी रचनाएँ नई कहानी आंदोलन का हिस्सा हैं?
उनकी कहानियाँ मलबे का मालिक, विपथगा, और अंधे मोड़ नई कहानी आंदोलन का महत्वपूर्ण हिस्सा मानी जाती हैं।
Q. मोहन राकेश को किस प्रकार के साहित्य के लिए जाना जाता है?
उन्हें हिंदी में यथार्थवादी कहानियाँ और नाटक लिखने के लिए जाना जाता है, जिनमें समाज और मनुष्य की जटिलताओं का चित्रण मिलता है।
Q. मोहन राकेश के नाटकों की विशेषता क्या है?
उनके नाटकों की विशेषता जीवन की जटिलता और यथार्थ को बारीकी से चित्रित करना है। वे मानवीय संबंधों और समाज की समस्याओं को गहराई से दिखाते हैं।
Q. मोहन राकेश ने हिंदी साहित्य में कौन सा योगदान दिया?
उन्होंने हिंदी नाटक और नई कहानी आंदोलन में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनकी रचनाओं ने हिंदी साहित्य में आधुनिकता और यथार्थवादी दृष्टिकोण को बढ़ावा दिया।
Q. उनकी प्रमुख कृतियों में कौन-कौन सी कृतियाँ शामिल हैं?
प्रमुख कृतियों में आषाढ़ का एक दिन, आधे-अधूरे, और लेहरों के राजहंस शामिल हैं। इसके अलावा उनकी कहानियाँ और उपन्यास भी लोकप्रिय हैं।
Q. मोहन राकेश का निधन कब हुआ?
उनका निधन 8 दिसम्बर 1972 को दिल्ली में हुआ।
Q. मोहन राकेश का साहित्यिक प्रभाव किन लेखकों पर पड़ा?
उनका प्रभाव हिंदी साहित्य के कई लेखकों पर पड़ा, विशेषकर नई कहानी आंदोलन से जुड़े लेखकों पर, जैसे कि कमलेश्वर, राजेंद्र यादव, और भीष्म साहनी।