गद्य Gadya (Prose)
छन्द, ताल, लय एवं तुकबन्दी से मुक्त तथा विचारपूर्ण एवं वाक्यबद्ध रचना को “गद्य’ कहते हैं। गद्य शब्द “गदू’ धातु के साथ “यत्’ प्रत्यय जोड़ने से बनता है। “गदू’ का अर्थ होता है–बोलना, बतलाना या कहना। सामान्यतः दैनिक जीवन में प्रयुक्त होनेवाली बोलचाल की भाषा में गद्य का ही प्रयोग किया जाता है। गद्य का लक्ष्य विचारों या भावों को सहज, सरल एवं सामान्य भाषा में विशेष प्रयोजन सहित संप्रेषित करना है। ज्ञान-विज्ञान से लेकर कथा-साहित्य आदि की अभिव्यक्ति का माध्यम साधारण व्यवहार की भाषा गद्य ही है, जिसका प्रयोग सोचने, समझने, वर्णन, विवेचन आदि के लिए होता है। वक्ता जो कुछ सोचता है, उसे तत्काल अनायास गद्य के रूप में व्यक्त भी कर सकता है। ज्ञान-विज्ञान की समृद्धि के साथ ही गद्य की उपादेयता और महत्ता में वृद्धि होती जा रही है। किसी कवि या लेखक के हदयगत भावों को समझने के लिए ज्ञान की आवश्यकता है और गद्य ज्ञान- वृद्धि का एक सफल साधन है। इसीलिए इतिहास, भूगोल, राजनीतिशास्त्र, धर्म, दर्शन आदि के क्षेत्र में ही नहीं, अपितु नाटक, कथा-साहित्य आदि में भी इसका एकच्छत्र प्रभाव स्थापित हो गया है। यदि विचारपूर्वक देखा जाय तो आधुनिक हिन्दी-साहित्य की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण घटना गद्य का आविष्कार ही है और गद्य का विकास होने पर ही हमारे साहित्य की बहुमुखी उन्नति भी सम्भव. हो सकी है।
हिन्दी गद्य के सम्बन्ध में यह धारणा है कि मेरठ और दिल्ली के आस-पास बोली जानेवाली खड़ीबोली के साहित्यिक रूप को ही हिन्दी गद्य कहा जाता है। भाषा-विज्ञान की दृष्टि से ब्रजभाषा, खड़ीबोली, कन्नौजी, हरियाणवी, बुन्देलखण्डी, अवधी, बघेली और छत्तीसगढ़ी इन आठ बोलियों को*हिन्दी गद्य के अन्तर्गत सम्मिलित किया गया है। हिन्दी गद्य के प्राचीनतम् प्रयोग हमें “राजस्थानी! एवं “ब्रजभाषा’ में मिलते हैं।
गद्य और पद्य में अन्तर (Differences in Prose and Verse)
हिन्दी साहित्य को दो भागों में बाँटा गया है-
(१) गद्य साहित्य
(२) पद्य (काव्य) साहित्य।
विषय की दृष्टि से गद्य और पद्य में यह अन्तर है कि गद्य के विषय विचार-प्रधान और पद्य के विषय भाव-प्रधान होते हैं। दूसरी भाषाओं के समान इस भाषा के साहित्य में भी पद्य का अवतरण गद्य के बहुत पहले हुआ है। पद्य में कार्य की अनुभूति, उक्ति-वैचित्रय, सम्प्रेषणीयता और अलंकार की प्रवृत्ति देखी जाती है, जबकि गद्य में लेखक अपने विचारों को अभिव्यक्त करता है। गद्य में तर्क, बुद्धि, विवेक, चिन्तन का अंकुश होता है तो पद्च में स्वतन्त्र कल्पना की उड़ान होती है। गद्य में शब्द, वाक्य, अर्थ आदि सर्भी प्राय: सामान्य होते हैं, जबकि पद्य में विशिष्ट। कविता शब्दों की नयी सृष्टि है, इसलिए इसका कोई भी शब्द कोशीय अर्थ से प्रतिबन्धित नहीं होता, जीवन की अनुभूतियों से उसका भावात्मक सम्बन्ध होता है, जबकि गद्य भावात्मक सन्दर्भों के स्थान पर वस्तुनिष्ठ प्रतीकात्मक अर्थ ग्रहण करता है। गद्य को ‘निर्माणात्मक अभिव्यक्ति’ कहा गया है अर्थात् ऐसी अभिव्यक्ति जिसमें निर्माता के चारों ओर प्रयोग के लिए तैयार शब्द रहते हैं। गद्य की भाषा काव्य की अपेक्षा अधिक स्पष्ट, व्याकरणसम्मत और व्यवस्थित होती है। उक्ति-वैचित्रय और अलंकरण की प्रवृत्ति भी गद्य की अपेक्षा काव्य में अधिक होती है। गद्य में विस्तार अधिक होने के कारण किसी बात को खोलकर कहने की प्रवृत्ति रहती है, जबकि काव्य में किसी बात को संकेत रूप में ही कहने की प्रवृत्ति होती है। गद्य में यथार्थ, वस्तुपरक और तथ्यात्मक वर्णन पाया जाता है, जबकि काव्य में वर्णन सूक्ष्म, संकेतात्मक होता है। गद्य में विरला ही वाक्य आपूर्ण होता है, काव्य में विरला ही वाक्य पूर्ण होता है। इस प्रकार गद्य और पद्य विषय, भाषा, प्रस्तुति, शिल्प आदि की दृष्टि से अभिव्यक्ति के सर्वथा भिन्न दो रूप हैं और दोनों के दृष्टिकोण एवं प्रयोजन भी भिन्न होते हैं। गद्य में व्याकरण के नियमों की अवहेलना नहीं की जा सकती, जबकि पद्च में व्याकरण के नियमों पर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता। यद्यपि ऐसा नहीं है कि गद्य में भावपूर्ण चिन्तनशील मनःस्थितियों की अभिव्यक्ति नहीं हो सकती और ऐसा भी नहीं है कि पद्य में विचारों की अभिव्यक्ति नहीं हो सकती, किन्तु मुख्य रूप से गद्य एवं पद्य की प्रकृति उपर्युक्त प्रकार की ही होती है।
हिन्दी गद्य का स्वरूप और विकास विषय और परिस्थिति के अनुरूप शब्दों का सही स्थान-निर्धारण तथा वाक्यों की उचित योजना ही उत्तम गद्य की कसौटी है। यद्यपि वर्तमान में प्रचलित हिन्दी भाषा खड़ीबोली का परिनिष्ठित एवं साहित्यिक रूप है, परन्तु खड़ीबोली स्वयं अपने आपमें कोई बोली नहीं है। इसका विकास कई क्षेत्रीय बोलियों के समन्वय के फलस्वरूप हुआ है। विद्वानों ने इसके प्राचीन रूप पर आधारित तत्वों की खोज करने के बाद यह माना है कि खड़ीबोली का विकास मुख्यतः ब्रजभाषा एवं राजस्थानी गद्य से हुआ है। कुछ विद्वान् इसको दक्खिनी एवं अवधी गद्य का सम्मिश्रित रूप भी मानते हैं। आज हिन्दी गद्य का जो साहित्यिक रूप है; उसमें कई क्षेत्रीय बोलियों , का विकास दृष्टियोचर होता है। हिन्दी गद्य के आविर्भाव के सम्बन्ध में विद्वानों के अलग-अलग मत हैं। कुछ दसवीं शताब्दी मानते हैं तो बहुतेरे तेरहवीं शताब्दी । “राजस्थानी” एवं ‘ब्रजभाषा’ में हमें गद्य के प्राचीनतम् प्रयोग मिलते हैं। राज॑स्थानी गद्य की समय-सीमा ग्यारहवीं शताब्दी से चौदहंवीं शताब्दी तथा ब्रजभाषा गद्य की समय-सीमा चौदहवीं शताब्दी से सोलहवीं शताब्दी तक मानना उचित प्रतीत होता है। अतः यह स्पष्ट है कि दसवीं-ग्यारहवीं से तेरहवीं शताब्दी के मध्य ही हिन्दी गद्य का आविर्भाव हुआ था। अध्ययन की दृष्टि से हिन्दी गद्य साहित्य के विकास को निम्नलिखित कालक्रमों में विभाजित किया जा सकता है –
- पूर्व भारतेन्दु-युग अथवा प्राचीन युग → 13वीं शताब्दी से 1868 ई0 तक
- भारतेन्दु-युग → सन् 1868 ई0 से 1900 ई0 तक
- द्विवेदी-युग → सन् 1900 ई0 से 1922 ई0 तक
- शुक्ल-युग (छायावादी युग) → सन् 1922 ई0 से 1938 ई0 तक
- शुक्लोत्तर युग (छायावादोत्तर युग) → सन् 1938 ई0 से 1947 ई0 तक
- स्वातंत्र्योत्तर युग → सन् 1947 ई0 से अब तक ।
Here are frequently asked questions (FAQs) about gadya kise kahate hai ?
Q. गद्य क्या है?
गद्य एक लेखन शैली है जिसमें विचार और जानकारी को सार्थकता और व्यावसायिकता के साथ व्यक्त किया जाता है। गद्य कविता और नाटक के खिलाफ होता है, जो छंदच्छदित होते हैं।
Q. गद्य के प्रमुख भाग क्या होते हैं?
गद्य में प्रमुख भाग होते हैं: प्रस्तावना, मुख्य भाग, और निष्कर्षण।
Q. गद्य के प्रमुख प्रकार क्या होते हैं?
गद्य के प्रमुख प्रकार होते हैं: उपन्यास, कहानी, निबंध, संवाद, और लघुकथा।
Q. क्या गद्य और पद्य में अंतर होता है?
हां, गद्य और पद्य में अंतर होता है। गद्य में छंद नहीं होते हैं, जबकि पद्य में छंद का पालन किया जाता है।
Q. किसी भी भाषा में गद्य की महत्वपूर्ण उपयोगिता क्या होती है?
गद्य भाषा का महत्वपूर्ण हिस्सा होती है, क्योंकि इसके माध्यम से विचार और जानकारी को स्पष्ट रूप से व्यक्त किया जा सकता है। यह जानकारी को संगठित और प्रभावी तरीके से प्रस्तुत करने में मदद करती है।
Q. क्या कोई भी व्यक्ति गद्य लिख सकता है?
हां, कोई भी व्यक्ति गद्य लिख सकता है, अगर वह योग्यता और लेखन कौशल रखता है। लेखन कौशल को सुधारने के लिए प्रैक्टिस और पढ़ाई की आवश्यकता होती है।
Q. क्या गद्य लेखन का कोई नियम होता है?
हां, गद्य लेखन के कुछ नियम होते हैं, जैसे कि वाक्यरचना, व्याकरण, और शैली के नियम। इन नियमों का पालन करने से लेखन कुशलता में सुधार होता है।
Q. क्या गद्य लेखन का कोई विशेष उद्देश्य होता है?
गद्य लेखन का उद्देश्य विभिन्न हो सकता है, जैसे कि जानकारी प्रदान करना, मनोरंजन करना, विचार व्यक्त करना, या समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करना।
Q. गद्य के उदाहरण क्या हो सकते हैं?
गद्य के उदाहरण में निबंध, उपन्यास, खबर, संवाद, और विशेष लेखन शैलियाँ शामिल हो सकती हैं।
Q. गद्य लेखकों की विशेष भूमिका क्या होती है?
गद्य लेख
Q. गद्य और पद्य क्या होते हैं?
गद्य और पद्य दो प्रमुख शैलियां हैं, जिन्हें साहित्य के अध्ययन में पाया जाता है। गद्य अवधारणाओं को प्रस्तुत करने के लिए उपयोग किया जाता है, जबकि पद्य कविता और अलंकारिक भाषा का उपयोग करके रस, भावनाओं को व्यक्त करने के लिए प्रयुक्त होता है।
Q. गद्य और पद्य के उदाहरण क्या हो सकते हैं?
- गद्य का उदाहरण: किताबों में लिखा हुआ कोई निबंध, खबर, विवरण आदि।
- पद्य का उदाहरण: कविताएँ, दोहे, गीत आदि जिनमें छंद, रस, और अलंकार का उपयोग होता है।
Q. गद्य और पद्य के लेखक कौन हैं?
- गद्य के प्रमुख लेखक महान लेखकों में मुंशी प्रेमचंद, चाणक्य, भगत सिंह, जवाहरलाल नेहरू, रवींद्रनाथ टैगोर, शरत चंद्र चट्टोपाध्याय, खुशवंत सिंह, द्रशेखर कामबाची, खुशवंत सिंह, पंडित जवाहरलाल नेहरू आदि शामिल हो सकते हैं।
- पद्य के प्रमुख कवियों में गोस्वामी तुलसीदास, सूरदास, रवींद्रनाथ टैगोर, मीराबाई, जयशंकर प्रसाद, रहीम दास, कबीर दास, महादेवी वर्मा, अतल बिहारी वाजपेयी आदि शामिल हो सकते हैं।
Q. गद्य और पद्य के अंतर में भाषा का अनुपालन कैसे किया जाता है?
गद्य में भाषा का अनुपालन सामान्यत: सामग्री की व्यावसायिकता के लिए किया जाता है, जबकि पद्य में अलंकार, रस, और छंद का पालन किया जाता है।
Q. गद्य और पद्य के अंतर में भावनाओं का व्यक्ति कैसे किया जाता है?
गद्य भाषा का साधारणत: उपयोग करता है जबकि पद्य कविता की माध्यम से व्यक्ति करता है, जिसमें भाषा को अलंकारिक तरीके से प्रयोग किया जाता है।
Q. गद्य और पद्य का उपयोग किन कार्यों के लिए किया जाता है?
गद्य का उपयोग जानकारी प्रस्तुत करने, कथा लिखने, या व्यक्तिगत अभिव्यक्ति के लिए किया जाता है, जबकि पद्य कविताएँ, गीत, और भावनाओं को अद्भुत तरीके से व्यक्त करने के लिए किया जाता है।