आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी का विवरण
पूरा नाम | आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी |
जन्म | 09 मई 1864 |
जन्म स्थान | दौलतपुर ( रायबरेली)उत्तर प्रदेश, भारत |
पिता का नाम | रामसहाय द्विवेदी |
पेशा | लेखक एवं कवि |
सम्पादन | ‘सरस्वती’ पत्रिका |
प्राम्भिक शिक्षा | अपने घर से ही |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
हिन्दी कहानियाँ | तीन देवता, महारानी चन्द्रिका, भारतवर्ष का तारा और राजकुमारी हिमांगिनी आदि | |
रचनाएं | जल चिकित्सा, अद्भुत आलाप, संकलन, सम्पत्तिशास्त्र, अतीत-स्मृति, वाग्विलास आदि | |
भाषा-शैली | भाषा – अरबी, फारसी तथा अंग्रेजी शब्दों का व्यवहार करते थे | शैली – निबन्धों में परिचयात्मक शैली, आलोचनात्मक शैली, गवेषणात्मक शैली तथा विचारात्मक शैली प्रयोग क्यकिया गया हैं | |
मृत्यु | 21 दिसम्बर 1938 |
मृत्यु स्थान | दौलतपुर ( रायबरेली ) उत्तर प्रदेश, भार |
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जीवन परिचय – महावीर प्रसाद द्विवेदी
हिन्दी गद्य साहित्य के युग-विधायक ‘महावीरप्रसाद ह्विवेदी का जन्म 5 मई, सन् 1864 ईं0 में रायबरेली जिले के दौलतपुर गाँव में हुआ था। कहा जाता है कि इनके पित्ता रामसहाय द्विवेदी को महावीर ‘का इष्ट: था, इसीलिए इन्होंने पुत्र का नाम महावीरसहाय रखा। इनकी मास्म्भिक शिक्षा गाँव की पाठशाला में हुई। पाठशाला के प्रधानाध्यापक ने भूलवश इनका नाम महावीरप्रसाद लिख दिया था। यह भूल हिन्दी साहित्य में स्थायी’ बन गयी। तेरह वर्ष की अवस्था में अंग्रेजी पढ़ने के लिए इन्होंने रायबरेली के जिला स्कूल में प्रवेश लिया। यहाँ संस्कृत के अभाव में इनको वैकल्पिक विषय फारसी लेना पड़ा। यहाँ एक वर्ष व्यतीत करने के बाद कुछ दिनों तक उन्नाव जिले. के रंजीत पुरवा स्कूल म आर कुछ “दिनों तक फतेहपुर में पढ़ने के पश्चात् ये. पिता के पास बम्बई (मुम्बई). चले गये। वहाँ इन्होंने संस्कृत, गुजराती, मराठी. और अंग्रेजी का अभ्यास किया। इनंकी उत्कट ज्ञान-पिपासा कभी तृप्त न हुई, किन्तु जीविका के लिए इन्होंने रलवे में नौकरी कर ली। रेलवे में विभिन्न पदों पर कार्य करने ‘के बाद झाँसी में डिस्ट्रिक्ट ट्रैफिक. सुपरिण्टेण्डेणट के कार्यालय में मुख्य लिपिक हो गये। पाँच वर्ष बाद उच्चाधिकारी से, खिन्न होकर इन्होंने नौकरी से त्याग-पत्र दे दिया। इनकी साहित्य साधना का क्रम सरकारी नौकरी के नीरस वातावरण में भी चल रहा था और इस अवधि में इनके संस्कृत ग्रन्थों के कई ) अनुवाद और कुछ आलोचनाएँ प्रकाश में आ चुकी थीं। सन् 1903 ई0 में द्विवेदीजी ने “सरस्वती” पत्रिका का ,सम्पादन स्वीकार किया। 1920 ई0 तक यह गुरुतर दायित्व इन्होंने निष्ठापूर्वक निभाया। “सरस्वती से अलगं होने पर इनके जीवन के अन्तिम अठारह वर्ष गाँव के नीरस वातावरण में बड़ी कठिनाई से व्यतीत हुए। 27 दिसम्बर सन् 1938 ई0 को रायबरेली में हिन्दी के इस यशस्वी साहित्यकार .का स्वर्गवास हो गया। . कक हिन्दी साहित्य में द्विवदीजी का मूल्यांकन तत्कालीन परिस्थितियों के सन्दर्भ में किया जा सकता है। वह समय हिन्दी के कलात्मक विकास का नहीं, हिन्दी के आभांवों की पूर्ति का था। द्विवेदी जी ने ज्ञान के विविध क्षेत्रों, इतिहास, अर्थशास्त्र, विज्ञान, पुरातत्व, चिकित्सा, राजनीति, जीवनी आदि से सामग्री लेकर हिन्दी के अंभावों की पूर्ति की। हिन्दी गद्य को माँजने-सँवारने और परिष्कृत करने में आजीवन संलग्न रहे। इन्हें हिन्दी साहित्य सम्मेलन ने “साहित्य वाचस्पति’ एवं नागरी प्रचारिणी सभा ने “आचार्य’ की उपाधि से सम्मानित किया था। उस समय टीकां-टिप्पणी करके सही मार्ग का निर्देशन देनेवाला कोई न था। इन्होंने इस अभाव को दूर किया तथा भाषा के. स्वरूप-संगठन, वाक्य-विन्यास, विराम-चिह्नों के प्रयोग तथा व्याकरण की शुद्धता पर विशेष बल दिया। ‘लेखकों की अशुद्धियों को रेखांकित किया। स्वयं ‘ लिखकर तथा दूसरों से लिखवाकर इन्होंने हिन्दी गद्य को पुष्ठ और परिमार्जित किया। हिन्दी गद्य के विकास में इनका ब ऐतिहासिक महत्त्व है।
‘महाकवि माघ का प्रभात-वर्णन’
निबंध में संस्कृंत के महाकवि माघ के प्रभात-वर्णन सम्बन्धी हृदयस्पर्शी स्थलों को निबंधकार ने हमारे सामने रखा हैं। उसने बहुत ही कलात्मक ढंग से यह दिखलाया है कि किस तरह सूर्य और चन्द्रमा, नक्षत्र एवं दिग्वधुएँ अपनी-अपनी क्रीड़ाओं में तल्लीन हैं। सूर्य की रश्मियाँ अन्धकार को नष्ट कर जीबन और त ‘ जगत को प्रकाश से परिपूर्ण कर देती हैं। रसिक चन्द्रमा अपनी शीतल किरणों से रजनीगंधा को प्रमुदित कर देता है। सूर्य और चन्द्रमा समय-समय पर दिग्वधुओं से कैसे प्रणय-विवेदन करते हुए एक दूसरे के प्रति प्रतिद्वन्द्विता के भाव से भर उठते हैं, केसे प्रवासी सूर्य का स्थान चन्द्रमा लेकर दिग्वधुओं से हास-परिहास कंरते हुए सूर्य के कोप॑ का भाजन बन “उसके द्वारा परास्त किया जाता है |
साहित्यिक परिचय (Sahityik Parichay)
महावीर प्रसाद द्विवेदी, जिनका जन्म 30 सितंबर 1907 को हुआ था और मृत्यु 19 मार्च 1987 को हुई, भारतीय साहित्य के प्रमुख हिंदी कवि और लेखकों में से एक थे। वे नवजवानों के बीच में ‘नये काव्य’ की पहली आवाज़ थे और उनका साहित्य आधुनिकता, समाजवाद, और मानवता के मुद्दों पर आधारित था।
महावीर प्रसाद द्विवेदी का काव्य और गद्य साहित्य दोनों ही महत्त्वपूर्ण हैं। उनकी कविताएँ और काव्यरचनाएँ भारतीय साहित्य में गुणवत्ता के साथ लोकप्रिय हुईं हैं। कुछ प्रमुख काव्य रचनाएँ उनकी हैं:
- राष्ट्रीय एकता – इस कविता में वे भारतीय एकता और विविधता के महत्व को बयां करते हैं।
- आकांक्षा – इस काव्य कृति में वे मानव आत्मा की आकांक्षा और स्वतंत्रता को महत्त्वपूर्ण धारणाओं के साथ प्रस्तुत करते हैं।
- समय की रूपरेखा – यह काव्यरचना जीवन के समय की महत्वपूर्ण विषयों पर आधारित है।
- काष्ठकार – एक ब्राह्मण श्रमिक की कहानी को दर्शाते हुए, वे व्यक्ति के मूल्य और समाज में उसकी स्थिति के महत्व को बताते हैं।
महावीर प्रसाद द्विवेदी का गद्य साहित्य भी उनके लेखन के महत्वपूर्ण हिस्से हैं। उन्होंने कई उपन्यास, निबंध, कहानियाँ, और समालोचनात्मक लेखन किए।
महावीर प्रसाद द्विवेदी को उनके साहित्य के लिए भारत सरकार द्वारा कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, और उन्होंने हिंदी साहित्य को अपनी अद्वितीय रचनाओं के माध्यम से अमृतित किया।
वे नहीं सिर्फ एक महान कवि और लेखक थे, बल्कि एक समाजसेवक भी थे और उन्होंने समाज में सामाजिक और सांस्कृतिक सुधार के लिए भी कई महत्वपूर्ण कार्य किए।
मौलिक पद्य रचनाएँ (Maulik Padya Rachnaye)
- देवी स्तुति-शतक (1892 ई०)
- कान्यकुब्जावलीव्रतम (1898 ई०)
- समाचार पत्र सम्पादन स्तवः (1898 ई०)
- नागरी (1900 ई०)
- कान्यकुब्ज-अबला-विलाप (1907 ई०)
- काव्य मंजूषा (1903 ई०)
- सुमन (1923 ई०)
- द्विवेदी काव्य-माला (1940 ई०)
- कविता कलाप (1909 ई०)
पद्य (अनूदित) रचनाएँ (Padya Anudit Rachnaye)
- विनय विनोद (1889 ई०)
- विहार वाटिका (1890 ई०)
- स्नेह माला (1890 ई०)
- श्री महिम्न स्तोत्र (1891 ई०)
- गंगा लहरी (1891 ई०)
- ऋतुतरंगिणी (1891 ई०)
- कुमारसम्भवसार (1902 ई०)
मौलिक गद्य रचनाएँ (Maulik Gadya Rachnaye) ⨠
- नैषध चरित्र चर्चा (1899 ई०)
- तरुणोपदेश (अप्रकाशित)
- हिन्दी शिक्षावली तृतीय भाग की समालोचना (1901 ई०)
- वैज्ञानिक कोश (1906 ई०)
- नाट्यशास्त्र (1912 ई०)
- विक्रमांकदेवचरितचर्चा (1907 ई०)
- हिन्दी भाषा की उत्पत्ति (1907 ई०)
- सम्पत्ति-शास्त्र (1907 ई०)
- कौटिल्य कुठार (1907 ई०)
- कालिदास की निरकुंशता (1912 ई०)
- वनिता-विलाप (1918 ई०)
- औद्यागिकी (1920 ई०)
- रसज्ञ रंजन (1920ई.)
- कालिदास और उनकी कविता (1920 ई०)
- सुकवि संकीर्तन (1924 ई०)
- अतीत स्मृति (1924 ई०)
- साहित्य सन्दर्भ (1928 ई०)
- अदभुत आलाप (1924 ई०)
- महिलामोद (1925 ई०)
- आध्यात्मिकी (1928 ई०)
- वैचित्र्य चित्रण (1926 ई०)
- साहित्यालाप (1926 ई०)
- विज्ञ विनोद (1926 ई०)
- कोविद कीर्तन (1928 ई०)
- विदेशी विद्वान (1928 ई०)
- प्राचीन चिह्न (1929 ई०)
- चरित चर्या (1930 ई०)
- पुरावृत्त (1933 ई०)
- दृश्य दर्शन (1928 ई०)
- आलोचनांजलि (1928 ई०)
- चरित्र चित्रण (1929 ई०)
- पुरातत्त्व प्रसंग (1929 ई०)
- साहित्य सीकर (1930ई०)
- विज्ञान वार्ता (1930 ई०)
- वाग्विलास (1930 ई०)
- संकलन (1931 ई०)
- विचार-विमर्श (1931 ई०)
गद्य (अनूदित) रचनाएँ (Gadya Anudit Rachnaye) ⨠
- भामिनी-विलास (1891 ई०)
- अमृत लहरी (1896 ई०)
- बेकन-विचार-रत्नावली (1901 ई०)
- शिक्षा (1906 ई०)
- स्वाधीनता (1907 ई०)
- जल चिकित्सा (1907 ई०)
- हिन्दी महाभारत (1908 ई०)
- रघुवंश (1912 ई०)
- वेणी-संहार (1913 ई०)
- कुमार सम्भव (1915 ई०)
- मेघदूत (1917 ई०)
- किरातार्जुनीय (1917 ई०)
- प्राचीन पण्डित और कवि (1918 ई०)
- आख्यायिका सप्तक (1927 ई०)
आलोचना ग्रंथ (Alochana Granth)
महावीर प्रसाद द्विवेदी जी का आलोचना ग्रंथ विभिन्न भाषाओं में उपलब्ध हैं, और उन्होंने भारतीय साहित्य और समाज के विभिन्न पहलुओं पर गहरा विचार किया है। उनके लेखन का मुख्य ध्येय विभिन्न साहित्यिक कार्यों, लेखकों और कविताओं की गहरी विशेषता और व्यक्तिगत दृष्टिकोण पर आलोचना करना था।
महावीर प्रसाद द्विवेदी जी के कुछ प्रमुख आलोचना ग्रंथ निम्नलिखित हैं:
- साहित्य का सार – इस ग्रंथ में, वे भारतीय साहित्य के मूल सिद्धांतों, भाषाओं और कला-सृजन की महत्ता पर चर्चा करते हैं।
- साहित्य का इतिहास – इस पुस्तक में, महावीर प्रसाद द्विवेदी जी भारतीय साहित्य के विकास का इतिहास और उसके प्रमुख युगों के साहित्यिक आयामों की आलोचना करते हैं।
- साहित्य की भाषाएँ – इस ग्रंथ में, उन्होंने भाषाओं के महत्त्व को समझाने का प्रयास किया है और विभिन्न भाषाओं के साहित्य को अलग-अलग प्रकारों से विश्लेषण किया है।
- साहित्य और समाज – इस पुस्तक में, वे साहित्य के समाज में कैसे प्रभावी हो सकता है और सामाजिक परिवर्तन के साथ कैसे जुड़ा है, इस पर विचार करते हैं।
महावीर प्रसाद द्विवेदी जी ने अपने आलोचना ग्रंथों के माध्यम से भारतीय साहित्य और समाज के विभिन्न पहलुओं का गहरा अध्ययन किया और छायाचित्रण किया। उनके लेखन का महत्वपूर्ण योगदान है और इसका साहित्यिक और सामाजिक दृष्टिकोण में महत्त्व है।
निबंध (Nibandh)
महावीर प्रसाद द्विवेदी जी के बारे में 10 निबंध के शीर्षक:
- “महावीर प्रसाद द्विवेदी: उनका जीवन और योगदान”
- “महावीर प्रसाद द्विवेदी: हिंदी साहित्य के महान साहित्यकार”
- “महावीर प्रसाद द्विवेदी का जीवन परिचय”
- “महावीर प्रसाद द्विवेदी: उनकी रचनाएँ और योगदान”
- “महावीर प्रसाद द्विवेदी की कविताओं का अद्भुत सौन्दर्य”
- “महावीर प्रसाद द्विवेदी: हिंदी साहित्य के स्वर्णकार”
- “महावीर प्रसाद द्विवेदी का साहित्यिक योगदान”
- “महावीर प्रसाद द्विवेदी: एक महान कवि की दृष्टि”
- “महावीर प्रसाद द्विवेदी के उपन्यास: एक अन्याय का विचार”
- “महावीर प्रसाद द्विवेदी की जीवनी: एक महान व्यक्ति की कहानी”
शैली (Shaili)
महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की शैली के मुख्यतः हैं –
1. परिचयात्मक शैली
महावीर प्रसाद द्विवेदी एक प्रमुख भारतीय कवि और साहित्यकार थे जिन्होंने हिन्दी साहित्य को उनकी अद्वितीय परिचयात्मक शैली के माध्यम से विकसित किया। वे 30 सितंबर 1907 को वाराणसी, उत्तर प्रदेश, भारत में पैदा हुए थे और 1998 में अपने जीवन के 91 वर्षों की आयु में निधन हुए थे।
महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की कविताएँ और लेखनी उनकी विविधता, गहराई और व्यक्तिगत अनुभवों को व्यक्त करने के लिए प्रसिद्ध थीं। उन्होंने भारतीय समाज, धर्म, राजनीति, और मानवीय संबंधों के विभिन्न पहलुओं पर अपनी विचारधारा को प्रस्तुत किया। उनकी शैली सरलता, सूक्ष्मता, और सुंदरता से भरपूर थी, जिससे वे अपने पाठकों के दिलों में एक गहरा प्रभाव छोड़ते थे।
महावीर प्रसाद द्विवेदी की कुछ प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं :-
- राष्ट्रीय कवि – इस कविता में वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रेरणास्त्रोत और राष्ट्रीय एकता के महत्व को बड़े ही सुंदरता से व्यक्त करते हैं।
- अन्तर्वाणी – इस काव्य कृति में वे अपने व्यक्तिगत अनुभवों और भावनाओं को उद्घाटन करते हैं।
- आपने कब कहा नहीं ? – यह कविता उनकी दिल की गहराइयों को छूने वाली है और मनुष्यता के मूल सवालों पर विचार करती है।
महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की रचनाओं में उनकी परिचयात्मक शैली ने उन्हें भारतीय साहित्य के महत्वपूर्ण और मान्य कवि में बना दिया, और उन्होंने अपने समय के साथ ही भारतीय समाज को भी गंभीरता से सोचने पर मजबूर किया।
2. आलोचनात्मक शैली
महावीर प्रसाद द्विवेदी एक प्रमुख हिंदी और उर्दू कवि और लेखक थे, जिन्होंने आलोचनात्मक शैली में अपने कामों का प्रस्तुतन किया। उनकी आलोचनात्मक शैली कुछ मुख्य विशेषताओं के साथ जुड़ी थी :-
- सभ्य और सरल भाषा – महावीर प्रसाद द्विवेदी की आलोचनात्मक शैली बहुत ही सभ्य और सरल भाषा में थी, जिससे पाठकों को समझने में आसानी होती थी। उन्होंने अपनी रचनाओं में संवादप्रधान और लोगों की जीवनस्थितियों को छूने वाली भाषा का प्रयोग किया।
- समाजिक चिंतन – उनकी आलोचनात्मक रचनाएँ आम जनता की समस्याओं और समाजिक मुद्दों को उठाने पर ध्यान केंद्रित करती थीं। वे समाज में विभिन्न पहलुओं की जांच करने और उनके आलोचना करने में माहिर थे।
- कविता और प्रोस – महावीर प्रसाद द्विवेदी की आलोचनात्मक शैली में कविता और प्रोस के रूप में उनके कई महत्वपूर्ण रचनाएँ हैं। उन्होंने कविता के माध्यम से अपने विचारों को व्यक्त किया और प्रोस में समाज की समस्याओं का विश्लेषण किया।
- विचारशीलता – उनकी आलोचनात्मक शैली में विचारशीलता का अद्भुत परिचय था। वे साहित्यिक और सामाजिक मुद्दों को गहराई से विचार करते थे और अपनी रचनाओं में विचारों को बड़े ही दृढ़ता से प्रस्तुत करते थे।
महावीर प्रसाद द्विवेदी की आलोचनात्मक शैली ने हिंदी साहित्य को नई दिशाओं में ले जाने में मदद की और उन्होंने विभिन्न समाजिक मुद्दों पर विचार करने के लिए साहित्य का उपयोग किया।
3. गवेषणात्मक शैली तथा विचारात्मक शैली
महावीर प्रसाद द्विवेदी (Mahavir Prasad Dwivedi) भारतीय साहित्यिक और कवि थे, जिन्होंने अपने लेखनी के माध्यम से हिन्दी साहित्य को नया दिशा देने का प्रयास किया। उन्होंने अपने लेखन में दो प्रमुख शैलियों का प्रयोग किया :-
- गवेषणात्मक शैली (Descriptive Style) – महावीर प्रसाद द्विवेदी के लेखन में गवेषणात्मक शैली का विशेष प्रमुख रूप से प्रयोग हुआ। इस शैली में, वे विषयों को विस्तारपूर्ण रूप से वर्णन करते थे और उनकी रचनाओं में सुंदर चित्रण और वर्णन का ध्यान देते थे। इसका प्रमुख उद्देश्य विषय की सुंदरता और रस निक्षेप को बढ़ावा देना था।
- विचारात्मक शैली (Intellectual Style) – द्विवेदी जी ने अपने लेखन में विचारात्मक शैली का भी प्रयोग किया। इसमें, वे विभिन्न विचारों, दरबारी और सामाजिक समस्याओं, और साहित्यिक विषयों पर गहरे विचार करते थे और उनके विचारों को अपने लेखन में प्रस्तुत करते थे। वे भारतीय साहित्य में विचारात्मक दृष्टिकोण को प्रोत्साहित करने का काम करते रहे हैं।
महावीर प्रसाद द्विवेदी जी को प्राप्त उपाधि
महावीर प्रसाद द्विवेदी का योगदान हिन्दी साहित्य में महत्वपूर्ण है और उनकी गवेषणात्मक शैली और विचारात्मक दृष्टिकोण ने नए साहित्यिक दिशाओं की ओर पहुँचाया। उनकी कविताएँ, निबंध, और ग्रंथ साहित्य प्रेमी और विचारशील पाठकों के लिए एक महत्वपूर्ण स्रोत रहे हैं।
महावीर प्रसाद द्विवेदी (Mahavir Prasad Dwivedi) भारतीय साहित्यिक और समीक्षावादी थे और उन्हें “भाषा शिल्पी” के रूप में भी जाना जाता है। उन्होंने अपने साहित्यिक योगदान के लिए कई पुरस्कार और उपाधियों से सम्मानित किया गया था।
महावीर प्रसाद द्विवेदी को भारत सरकार द्वारा दिए गए “पद्म भूषण” पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। “पद्म भूषण” भारत सरकार द्वारा दिया जाने वाला तीसरा सर्वोच्च सिविल पुरस्कार होता है और इससे उपाधित होने पर व्यक्ति को बड़ा सम्मान मिलता है।
कृपया ध्यान दें कि मेरे पास सामय की नवीनतम जानकारी सितंबर 2021 तक ही है, और किसी नई उपाधि या सम्मान की जानकारी मेरे कट ऑफ की तारीख के बाद की नहीं हो सकती।
Frequently Asked Questions (FAQs) Mahavir Prasad Ji Ka Jivan Parichay
प्र०.1 महावीर प्रसाद द्विवेदी जी का पूरा नाम क्या है ?
उ०. आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी
प्र०.2 महावीर प्रसाद द्विवेदी जी का जन्म कब हुआ था ?
उ०. 09 मई 1864
प्र०.3 महावीर प्रसाद द्विवेदी जी का जन्म स्थान कहा था ?
उ०. दौलतपुर (रायबरेली) उत्तर प्रदेश, भारत
प्र०.4 महावीर प्रसाद द्विवेदी जी का मृत्यु कब हुआ था ?
उ०. 21 दिसम्बर 1938
प्र०.5 महावीर प्रसाद द्विवेदी जी का मृत्यु स्थान कहा था ?
उ०. दौलतपुर (रायबरेली) उत्तर प्रदेश, भारत
प्र०.6 महावीर प्रसाद द्विवेदी जी का पिता का नाम क्या था ?
उ०. रामसहाय द्विवेदी
प्र०.7 महावीर प्रसाद द्विवेदी जी का पेशा क्या हैं ?
उ०. लेखक एवं कवि
प्र०.8 महावीर प्रसाद द्विवेदी जी का सम्पादन क्या हैं ?
उ०. ‘सरस्वतीसी’ पत्रिका
प्र०.9 महावीर प्रसाद द्विवेदी जी का प्रम्भिक शिक्षा क्या हैं ?
उ०. घर से ही था |
प्र०.10 महावीर प्रसाद द्विवेदी जी का राष्ट्रीयता क्या था ?
उ०. भारतीय
प्र०.11 महावीर प्रसाद द्विवेदी जी का रचनाएं क्या हैं ?
उ०. जल चिकित्सा, अद्भुत आलाप, संकलन, सम्पत्तिशास्त्र, अतीत-स्मृति, वाग्विलास आदि |
प्र०.12 महावीर प्रसाद द्विवेदी जी का भाषा शैली क्या हैं ?
उ०. भाषा – अरबी, फारसी तथा अंग्रेजी शब्दों का व्यवहार करते थे |
शैली – निबन्धों में परिचयात्मक शैली, आलोचनात्मक शैली, गवेषणात्मक शैली तथा विचारात्मक शैली प्रयोग क्यकिया गया हैं |
प्र०.13 महावीर प्रसाद द्विवेदी जी का हिन्दी कहानियां क्या था ?
उ०. तीन देवता, महारानी चन्द्रिका, भारतवर्ष का तारा और राजकुमारी हिमांगिनी आदि |
प्र०.14 महावीर प्रसाद द्विवेदी जी का साहित्यिक परिचय क्या हैं ?
उ०. महावीर प्रसाद द्विवेदी, जिनका जन्म 30 सितंबर 1907 को हुआ था और मृत्यु 19 मार्च 1987 को हुई, भारतीय साहित्य के प्रमुख हिंदी कवि और लेखकों में से एक थे। वे नवजवानों के बीच में ‘नये काव्य’ की पहली आवाज़ थे और उनका साहित्य आधुनिकता, समाजवाद, और मानवता के मुद्दों पर आधारित था।
महावीर प्रसाद द्विवेदी का काव्य और गद्य साहित्य दोनों ही महत्त्वपूर्ण हैं। उनकी कविताएँ और काव्यरचनाएँ भारतीय साहित्य में गुणवत्ता के साथ लोकप्रिय हुईं हैं। कुछ प्रमुख काव्य रचनाएँ उनकी हैं:
- राष्ट्रीय एकता – इस कविता में वे भारतीय एकता और विविधता के महत्व को बयां करते हैं।
- आकांक्षा – इस काव्य कृति में वे मानव आत्मा की आकांक्षा और स्वतंत्रता को महत्त्वपूर्ण धारणाओं के साथ प्रस्तुत करते हैं।
- समय की रूपरेखा – यह काव्यरचना जीवन के समय की महत्वपूर्ण विषयों पर आधारित है।
- काष्ठकार – एक ब्राह्मण श्रमिक की कहानी को दर्शाते हुए, वे व्यक्ति के मूल्य और समाज में उसकी स्थिति के महत्व को बताते हैं।
प्र०.15 महावीर प्रसाद द्विवेदी जी का जीवन परिचय क्या हैं ?
उ०. मुख्य पृष्ठ पे जाये।
प्र०.16 महावीर प्रसाद द्विवेदी जी का आलोचना ग्रंथ क्या हैं ?
उ०. महावीर प्रसाद द्विवेदी जी का आलोचना ग्रंथ विभिन्न भाषाओं में उपलब्ध हैं, और उन्होंने भारतीय साहित्य और समाज के विभिन्न पहलुओं पर गहरा विचार किया है। उनके लेखन का मुख्य ध्येय विभिन्न साहित्यिक कार्यों, लेखकों और कविताओं की गहरी विशेषता और व्यक्तिगत दृष्टिकोण पर आलोचना करना था।
महावीर प्रसाद द्विवेदी जी के कुछ प्रमुख आलोचना ग्रंथ निम्नलिखित हैं:
साहित्य का सार – इस ग्रंथ में, वे भारतीय साहित्य के मूल सिद्धांतों, भाषाओं और कला-सृजन की महत्ता पर चर्चा करते हैं।
साहित्य का इतिहास – इस पुस्तक में, महावीर प्रसाद द्विवेदी जी भारतीय साहित्य के विकास का इतिहास और उसके प्रमुख युगों के साहित्यिक आयामों की आलोचना करते हैं।
साहित्य की भाषाएँ – इस ग्रंथ में, उन्होंने भाषाओं के महत्त्व को समझाने का प्रयास किया है और विभिन्न भाषाओं के साहित्य को अलग-अलग प्रकारों से विश्लेषण किया है।
साहित्य और समाज – इस पुस्तक में, वे साहित्य के समाज में कैसे प्रभावी हो सकता है और सामाजिक परिवर्तन के साथ कैसे जुड़ा है, इस पर विचार करते हैं।
महावीर प्रसाद द्विवेदी जी ने अपने आलोचना ग्रंथों के माध्यम से भारतीय साहित्य और समाज के विभिन्न पहलुओं का गहरा अध्ययन किया और छायाचित्रण किया। उनके लेखन का महत्वपूर्ण योगदान है और इसका साहित्यिक और सामाजिक दृष्टिकोण में महत्त्व है।
प्र०.17 महावीर प्रसाद द्विवेदी जी का किस युग के कवि थे ?
उ०. द्विवेदी युग के प्रवर्तक थे ।