रस का परिचय
भारतीय काव्यशास्त्र में ‘रस’ एक महत्वपूर्ण संकल्पना है। रस का अर्थ है ‘सुखद अनुभूति’ या ‘आनंद’। यह वह तत्व है जो कविता, नाटक, या अन्य कला रूपों में अनुभव किया जाता है। भरत मुनि के नाट्यशास्त्र में रस को विस्तार से वर्णित किया गया है, जहाँ यह कहा गया है कि रस नाट्यकला का आत्मा है। रस का निर्माण विभिन्न भावों (स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव, व्यभिचारी भाव) के मेल से होता है। इन भावों के संयोजन से दर्शकों में जो अनुभूति होती है, उसे रस कहते हैं। इसे हम इस प्रकार भी समझ सकते हैं कि किसी कला को देखने या सुनने के बाद जो प्रभाव हमारे मन पर पड़ता है, वह रस कहलाता है।
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रस के प्रकार
भारतीय काव्यशास्त्र में रस को मुख्यतः नौ प्रकारों में बाँटा गया है, जिन्हें नव-रस भी कहा जाता है।
नौ रसों का विस्तार रूप से लिखें हैं।
1. श्रृंगार रस
श्रृंगार रस प्रेम और सौंदर्य का रस है। इसमें दो प्रकार के भाव होते हैं: संयोग श्रृंगार (मिलन) और वियोग श्रृंगार (विछोह)। संयोग श्रृंगार में प्रेमियों का मिलन, उनकी बातचीत, और प्रेमपूर्ण व्यवहार होता है। वियोग श्रृंगार में प्रेमियों का बिछड़ना, उनकी पीड़ा, और प्रेम की तड़प होती है।
उदाहरण :- कालिदास की ‘कुमारसम्भव’ में पार्वती और शिव का संयोग श्रृंगार।
2. हास्य रस
हास्य रस में हंसी और विनोद का वर्णन होता है। यह रस दर्शकों को आनंदित और उल्लसित करता है। हास्य रस के मुख्यतः दो प्रकार होते हैं: आत्म-हास्य (स्वयं पर हंसना) और पर-हास्य (दूसरों पर हंसना)।
उदाहरण :- भारतेंदु हरिश्चंद्र की ‘अंधेर नगरी’।
3. करुण रस
करुण रस में दुख और विषाद का अनुभव कराया जाता है। यह रस दर्शकों के मन में करुणा और सहानुभूति उत्पन्न करता है। इसमें विभाव के रूप में दुःखद घटनाओं का वर्णन होता है।
उदाहरण :- रामायण में सीता का वनवास।
4. रौद्र रस
रौद्र रस क्रोध और उग्रता का रस है। इसमें विभाव के रूप में युद्ध, संघर्ष, और क्रोधपूर्ण घटनाओं का वर्णन होता है। यह रस दर्शकों में उत्साह और जोश भरता है।
उदाहरण :- महाभारत में द्रौपदी के अपमान के बाद भीम का क्रोध।
5. वीर रस
वीर रस साहस और वीरता का रस है। इसमें नायक के वीरतापूर्ण कार्यों का वर्णन होता है। यह रस दर्शकों में वीरता और आत्मसम्मान की भावना उत्पन्न करता है।
उदाहरण :- रामायण में राम का रावण से युद्ध।
6. भयानक रस
भयानक रस भय और आतंक का रस है। इसमें विभाव के रूप में डरावनी घटनाओं, भूत-प्रेत, और भयानक दृश्य का वर्णन होता है। यह रस दर्शकों में भय और सिहरन उत्पन्न करता है।
उदाहरण :- विक्रम और बेताल की कहानियाँ।
7. बीभत्स रस
बीभत्स रस घृणा और अरुचि का रस है। इसमें विभाव के रूप में घृणित और अप्रिय घटनाओं का वर्णन होता है। यह रस दर्शकों में घृणा और वितृष्णा उत्पन्न करता है।
उदाहरण :- मसान में जलती हुई चिताओं का दृश्य।
8. अद्भुत रस
अद्भुत रस आश्चर्य और अचरज का रस है। इसमें विभाव के रूप में अद्भुत और विलक्षण घटनाओं का वर्णन होता है। यह रस दर्शकों में आश्चर्य और विस्मय उत्पन्न करता है।
उदाहरण :- हनुमान का संजीवनी बूटी लाना।
9. शांत रस
शांत रस शांति और स्थिरता का रस है। इसमें विभाव के रूप में साधना, ध्यान, और मानसिक स्थिरता का वर्णन होता है। यह रस दर्शकों में शांति और संतोष की भावना उत्पन्न करता है।
उदाहरण :- महाभारत में विदुर का उपदेश।
10. वात्सल्य रस
माता-पिता और बच्चों के बीच के प्रेम और स्नेह को व्यक्त करता है। इसमें ममता, दुलार और देखभाल की भावना प्रमुख होती है। जैसे माता का अपने शिशु को पालना, खिलाना और उसके प्रति दया दिखाना वात्सल्य रस का उदाहरण है। यह प्रेम निश्छल और निस्वार्थ होता है।
उदाहरण :- यशोदा का कान्हा को गोद में उठाकर प्यार से खिलाना, उसके मुँह में मक्खन लगाना और कान्हा की शरारतों पर स्नेहभरी डांट लगाना वात्सल्य रस का सुंदर चित्रण है।
11. भक्ति रस
भक्ति रस एक उच्च भावनात्मक स्थिति है, जो भगवान या ईश्वर के प्रति गहरी श्रद्धा, प्रेम, और समर्पण का अनुभव कराता है। यह रस भगवान की भक्ति में लगे व्यक्ति के मन, विचार और जीवन को पवित्रता और आत्म-समर्पण की दिशा में धकेलता है। भक्ति रस ध्यान, ध्यान, और पूजा के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है और यह भगवान के प्रति अटल प्रेम की अभिव्यक्ति होता है।
उदाहरण :- भगवान श्रीकृष्ण के प्रति गोपियों की अद्भुत भक्ति और प्रेम है। उनका पूरा मन, श्रीकृष्ण के लीलाओं, गुणों और व्यक्तित्व में लीन रहता है। इस प्रेम और श्रद्धा से उनका मन भगवान में लगा रहता है, जो भक्ति रस का उत्कृष्ट उदाहरण है।
निष्कर्ष
रस की संकल्पना भारतीय काव्यशास्त्र में एक महत्वपूर्ण और मौलिक भूमिका निभाती है। यह न केवल कला के विभिन्न रूपों में सौंदर्य और अनुभूति की व्याख्या करता है, बल्कि इसे दर्शकों के मनोविज्ञान से भी जोड़ता है। नौ रसों की यह विविधता दर्शाती है कि मानव अनुभूतियाँ कितनी व्यापक और विविध हो सकती हैं, और कैसे कला इन अनुभूतियों को सजीव और संवेदनशील बना सकती है।
Frequently Asked Questions (FAQs) About ras kise kahte hain and how many types are there ?
Q. रस का अर्थ क्या है ?
रस का अर्थ “सार” या “स्वाद” होता है और यह किसी साहित्यिक रचना के भावनात्मक प्रभाव को व्यक्त करता है।
रस कितने प्रकार के होते हैं ?
रस के पारंपरिक रूप से नौ प्रमुख प्रकार माने जाते हैं, जिन्हें नवरस कहा जाता है।
Q. श्रृंगार रस क्या है ?
श्रृंगार रस प्रेम और सौंदर्य का रस है।
Q. हास्य रस क्या होता है ?
हास्य रस हंसी और खुशी का रस होता है।
Q. करुण रस का अर्थ क्या है ?
करुण रस में दुःख और करुणा की भावना होती है।
Q. रौद्र रस क्या है ?
रौद्र रस क्रोध और गुस्से का रस है।
Q. वीर रस किसे कहते हैं ?
वीर रस वीरता और साहस का रस होता है।
Q. भयानक रस का अर्थ क्या होता है ?
भयानक रस में भय और आतंक की भावना होती है।
Q. बीभत्स रस क्या है ?
बीभत्स रस घृणा और विकर्षण का रस होता है।
Q. अद्भुत रस किसे कहते हैं ?
अद्भुत रस आश्चर्य और चमत्कार का रस होता है।
Q. शांत रस का अर्थ क्या है ?
शांत रस शांति और संतोष का रस होता है।
Q. वात्सल्य रस क्या होता है ?
वात्सल्य रस माता-पिता और बच्चों के बीच का प्रेम और स्नेह का रस होता है।
Q. भक्ति रस क्या है ?
भक्ति रस भगवान और भक्त के बीच का प्रेम और श्रद्धा का रस होता है।
Q. रस किस शास्त्र में महत्वपूर्ण है ?
रस भारतीय सौंदर्यशास्त्र और साहित्य शास्त्र में महत्वपूर्ण सिद्धांत है।
Q. रस क्या उत्पादन करता है ?
रस दर्शकों के मन में भावनात्मक अनुभव को उत्पन्न करता है।