सुमित्रानंदन पंत का जीवन परिचय|रचनाएं, भाषा -शैली|Sumitranandan Pant Ka Jivan Parichay

Written By The Biography Point

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now

Quick Facts – Sumitranandan Pant

पूरा नामसुमित्रानंदन पंत
बचपन का नामगोसेन दत्त
जन्म तिथि20 मई 1900 ई०
जन्म स्थानगांव कौसानी, जिला अल्मोड़ा (उत्तराखण्ड)
आयु77 साल
पिता का नामश्री गंगादत्त पंत
माता का नामश्रीमती सरस्वती देवी ( जन्म के 6 घंटे बाद मृत्यु )
शिक्षाहिन्दी साहित्य
विषयसंस्कृत
पेशा• लेखक
• कवि
पुरस्कार• ज्ञानपीठ पुरस्कार
• पद्म भूषण
• साहित्य अकादमी पुरस्कार
• सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार
रचनाऍं• काव्य – वीणा, ग्रन्थि, उच्छ्वास, पल्लव, गुंजन आदि।
• नाटक – परिक्रीड़ा, ज्योत्सना, रानी आदि।
• उपन्यास – हार
• कहानी संग्रह – पाॅंच कहानियाॅं
भाषाकोमल, हिंदी, संस्कृत आदि।
शैलीतुकान्त , अतुकांत, मुक्तक, गीति शैली।
धर्महिन्दू
जातिब्राह्मण
नागरिकताभारतीय
मृत्यु तिथि28 दिसम्बर 1977 ई०
मृत्यु स्थानइलाहाबाद (प्रयागराज), उत्तर प्रदेश, भारत

और कुछ पढ़े

आदित्यनाथ योगीसंबित पात्र
भूपेश बघेलकिशोरी लाल शर्मा
चिराग पासवानरामविलास पासवान
रहीम दाससूरदास
जयप्रकाश भारतीमीराबाई
डॉ संपूर्णानंदसूर्यकान्त त्रिपाठी
मैथिलीशरण गुप्तसरदारपूर्ण सिंह
महावीर प्रसाद द्विवेदीडॉ० भीमराव अम्बेडकर
रामचंद्र शुक्लकबीर दास
नरेंद्र मोदीगोस्वामी तुलसीदास

जीवन परिचय – सुमित्रानंदन पंत (Sumitranandan Pant)

सुमित्रानन्दन पन्त का जन्म 20 मई 1900 ई० में अलमोड़ा जिले के रमणीय स्थल कौसानी नामक गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम गंगादत्त पन्त था। जन्म के कुछ घंटों के बाद ही इनकी माता का स्वर्गवास हो गया। तत्पश्चात इनका पालन- पोषण इनकी दादी ने किया। इनके बचपन का नाम गुसाई दत्त था। इनकी प्रतिभा बड़ी विलक्षण थी। जव इनकी आयु सात वर्ष की थी और ये चौथी कक्षा में ही पढ़ते थे तभी इन्होंने पहली छन्द रचना की थी।

प्रारम्भिक शिक्षा पूर्ण कर जब पन्त जी पढ़ने के लिए अल्मोड़ा आये तव इन्होंने अपना नाम गुसाई दत्त से बदल कर सुमित्रानन्दन पन्त रखा। सन् 1919 ई० में आप इलाहाबाद में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए आये और म्योर सेन्ट्रल कालेज में प्रवेश लिया। सन् 1921 में देशप्रेम से प्रेरित होकर इन्होंने कालेज छोड़ दिया और साहित्य साधना में लग गये। सन् 1931 ई० में कालाकाँकर गये, वहाँ मार्क्सवाद का अध्ययन किया और फिर प्रयाग आकर ‘रूपाभा’ नामक पत्रिका का सम्पादन किया। सन् 1942 ई० में आप भारत भ्रमण के लिए निकल पड़े थे। इसी भ्रमण में इनका महर्षि अरविन्द से परिचय हुआ। अरविन्द के विचारों से प्रभावित होकर इन्होंने अनेक काव्य संकलन प्रकाशित किये। 1950 ई० में इनका आकाशवाणी से सम्बन्ध जुड़ा और ये स्वच्छन्द रूप से साहित्य सृजन करने लगे। 28 दिसम्बर 1977 ई० में आपने पार्थिव शरीर को त्याग दिया।

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now

साहित्यिक कृतियाँ

सुमित्रानंदन पन्त जी ने विभिन्न क्षेत्रों में साहित्यिक रचनाएँ की हैं किन्तु वे मूलरूप में कवि थे और उनका कविरूप ही प्रत्येक साहित्यिक क्षेत्र में दिखाई पड़ता है। इनकी मुख्य रचनाएँ निम्नलिखित हैं-

  1. काव्य-ग्रन्थ – वीणा, ग्रन्थि, उच्छ्वास, पल्लव, गुंजन, युगान्त, युगवाणी, पल्लविनी, स्वर्ण किरण, उत्तरा आदि आपके प्रसिद्ध काव्य ग्रन्थ हैं। गांधी जी की मृत्यु के बाद पन्त और बच्चन ने मिलकर गांधी जी को श्रद्धांजलि भेंट करने के उद्देश्य से ‘खादी के फूल’ नामक रचना भी प्रकाशित की थी।
  2. नाटक – परिक्रीड़ा, ज्योत्सना, रानी।
  3. उपन्यास – हार ।
  4. कहानी संग्रह – पाँच कहानियाँ।
  5. अनूदित ग्रन्थ – उमर खैय्याम की रुबाइयों का हिन्दी अनुवाद।

भाषा-शैली (Bhasha-Shaili)

सुमित्रानंदन पन्त जी ने शुद्ध खड़ी बोली में काव्य रचना की है। भाषा के आप शिल्पी है। इनकी भाषा सरल, कोमल तथा परिमार्जित है। शब्द की शक्ति को परखने की पन्त जी में अ‌द्भुत क्षमता थी। पन्त जी ने खड़ी बोली में कोमलकान्त पदावली का समावेश कर भाषा को मधूर, कोमल तथा सरस रूप दिया है। पन्त जी का शब्दचयन ऐसा अनूठा है कि वे जिस विषय का वर्णन करते है उसका सजीव चित्र-सा उपस्थित हो जाता है। कुछ नये-नये प्रतीकों का भी आपने प्रयोग किया है। प्रवाह और लालित्य इनकी भाषा में सर्वत्र बना रहता है। कहीं-कहीं सामासिक पदावली के कारण भाषा में किनष्टता अवश्य आ गयी है किन्तु ओज और माधुर्य गुण उसमें इतना है कि वह सलती नहीं है। लाक्षणिक प्रयोगों की अधिकता के कारण इनकी भाषा में कहीं-कही रहस्यात्मकता भी आ गयी है। चित्रोपमता, लाक्षणिकता तथा संगीतमयता इनकी भाषा की निजी विशेषताएँ हैं।

निष्कर्ष

सुमित्रानंदन पंत हिंदी साहित्य के छायावादी युग के प्रमुख कवियों में से एक थे। उनकी कविताएँ प्रकृति, सौंदर्य और मानवीय भावनाओं के गहन चित्रण के लिए जानी जाती हैं। पंत ने हिंदी काव्य को एक नई दिशा दी और उसे आधुनिकता से जोड़ा। उनकी रचनाएँ न केवल प्रकृति प्रेम को दर्शाती हैं, बल्कि समाज और मानवीय जीवन की जटिलताओं को भी उजागर करती हैं।

उनकी काव्य शैली में सौंदर्य, कोमलता और गहन चिंतन का मिश्रण देखने को मिलता है। पंत की कविताएँ पाठकों के हृदय को छूती हैं और उन्हें नए दृष्टिकोण से जीवन को देखने की प्रेरणा देती हैं। साहित्य में उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता, और वे हिंदी कविता के शिखर पर सदैव विराजमान रहेंगे।

Frequently Asked Questions About Sumitranandan Pant Biography:

Q. सुमित्रानंदन पंत कौन थे?
सुमित्रानंदन पंत एक प्रसिद्ध भारतीय कवि थे जो हिंदी साहित्य में अपने योगदान के लिए जाने जाते थे और छायावाद (रोमांटिक) आंदोलन के प्रमुख नेताओं में से एक थे।

Q. सुमित्रानंदन पंत का जन्म
20 मई 1900 को तत्कालीन भारत के कौसानी, अल्मोड़ा उत्तराखण्ड में हुआ था।

Q. सुमित्रानंदन पंत का असली नाम क्या था?
उनका जन्म का नाम गोसाईं दत्त था।

Q. सुमित्रानंदन पंत किस लिए जाने जाते हैं?
वे हिंदी में अपनी कविताओं के लिए प्रसिद्ध हैं, जिनमें रोमांटिकता, प्रकृति और दार्शनिक विचार झलकते हैं।

Q. सुमित्रानंदन पंत किस साहित्यिक आंदोलन से जुड़े थे?
वे हिंदी कविता में छायावाद आंदोलन के प्रमुख व्यक्तियों में से एक थे, जिसमें रोमांटिकता और प्रकृति की सुंदरता पर जोर दिया गया था।

Q. सुमित्रानंदन पंत की कुछ प्रसिद्ध रचनाएँ क्या हैं?
उनकी कुछ उल्लेखनीय कृतियों में पल्लव , गुंजन , ग्राम्या , युगवाणी और लोकायतन शामिल हैं ।

Q. क्या सुमित्रानंदन पंत को कोई पुरस्कार मिला?
हाँ, उन्हें कई प्रतिष्ठित पुरस्कार मिले, जिनमें ज्ञानपीठ पुरस्कार (1968), साहित्य अकादमी पुरस्कार (1960) और पद्म भूषण (1961) शामिल हैं।

Q. सुमित्रानंदन पंत की कविता का क्या महत्व है?
उनकी कविता अपने काव्य सौंदर्य, गहरी दार्शनिक अंतर्दृष्टि और प्रकृति के चित्रण के लिए प्रसिद्ध है, जिसका आधुनिक हिंदी साहित्य पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है।

Q. सुमित्रानंदन पंत का निधन
28 दिसंबर, 1977 को इलाहाबाद (अब प्रयागराज), उत्तर प्रदेश में हुआ था।

Q. सुमित्रानंदन पंत ने हिंदी साहित्य में क्या योगदान दिया?
पंत ने अपनी रोमांटिक और दार्शनिक कविताओं से हिंदी साहित्य को समृद्ध बनाने में योगदान दिया और छायावाद आंदोलन को लोकप्रिय बनाने में प्रमुख भूमिका निभाई।

Q. सुमित्रानंदन पंत की कविता का मुख्य विषय क्या था?
उनकी कविता मुख्य रूप से प्रकृति की सुंदरता, मानवीय भावनाओं और जीवन और अस्तित्व पर दार्शनिक विचारों पर केंद्रित थी।

Q. प्रकृति ने सुमित्रानंदन पंत की कविता को किस तरह प्रभावित किया?
कौसानी की सुरम्य पहाड़ियों में जन्मे होने के कारण, प्रकृति की सुंदरता ने उनके लेखन को गहराई से प्रभावित किया, और उन्होंने अक्सर अपनी कविताओं में प्राकृतिक दृश्यों और परिदृश्यों को दर्शाया।

Q. सुमित्रानंदन पंत की लेखन शैली क्या थी?
उनकी शैली कल्पना, गीतात्मक अभिव्यक्ति और दार्शनिक चिंतन के समृद्ध उपयोग के लिए जानी जाती है, जो कविता की रोमांटिक परंपरा से मेल खाती है।

Leave a Comment

close