डॉ० संपूर्णानन्द का जीवन परिचय | Dr. Sampurnanand Biography In Hind

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डॉ० संपूर्णानन्द जी का स्मरणीय संकेत

पूरा नामडॉ० संपूर्णानन्द
जन्म1 जनवरी 1890 (सं० 1891 वि०)
जन्म स्थानकाशी, वाराणसी (उत्तर प्रदेश)
पिता का नामविजयानन्द
माता का नामआनन्दी देवी
शिक्षाबी० एस-सी०, एल० टी०
पेशाअध्यापक, लेखक, साहित्यकार,
स्वतंत्रता सेनानी, राजनेता
उल्लेखनीय कार्यसंपूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय
की स्थापना की |
भाषाशुद्ध, संस्कृतनिष्ट, गम्भीर, प्रवाहमयी,
अनूठा शब्द चयन |
शैली
  • (i). विचारात्मक शैली,
  • (ii). व्याख्यात्मक शैली,
  • (iii). ओजपूर्ण शैली
रचनाएँ दार्शनिक ग्रन्थ, धार्मिक,
राजनैतिक तथा ऐतिहासिक ग्रन्थ|
राष्ट्रीयताभारतीय
पार्टीभारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
पिछले कार्यालय
  • राजस्थान के राज्यपाल (1962-1967),
  • उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री(1954-1960)
मृत्यु10 जनवरी 1969
मृत्यु स्थान काशी, वाराणसी (उत्तर प्रदेश)

डॉ० संपूर्णानन्द – जीवन परिचय

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            प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री, कुशल राजनीतिज्ञ एवं मर्मज्ञ साहित्यकार डॉ० संपूर्णानन्द गंभीर विचारक और प्रौढ़ लेखक थे। इनकी रंचनाओं में इनके व्यक्तित्व एवं पाण्डित्य की स्पष्ट छाप है। इन्होंने उच्च कोटि के साहित्य का निर्माण किया है।
 
               स्वतन्त्रता संग्राम के प्रमुख सेनानी, महान साहित्यकार डॉ० संपूर्णानन्द का जन्म 1 जनवरी सन्‌ 1890 ई० (सं० 1891 वि० ) में काशी के एक कायस्थ परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री विजयानन्द था । क्वींस, कालेज से बी०एस-सी० की उपाधि प्राप्त की, प्रयाग ट्रेनिंग कालेज से एल०टी० का प्रशिक्षण लिया और अध्यापक के रूप में सामाजिक जीवन में प्रवेश किया। कई संस्थाओं में कार्य करने के बांद आप काशी संस्कृत विद्यापीठ सें अध्यापक हो गये। 
 
           अध्यापक के रूप में डॉ० सम्पूणनिन्द को अदूभुत सफलता मिली। देश-प्रेम और समाज सेवा की भावना से प्रेरित होकर अपने स्वतन्त्रता संग्राम में सक्रिय भाग लिया। ये बड़े स्वाध्यायी तथा अध्ययनशील व्यक्ति थे। राजनीति और साहित्य, दोतों में ही इनकी कार्य अत्यन्त सराहनीय था।
 
            डॉ० संपूर्णानन्द ने उत्तर दे प्रदेश के शिक्षा मन्त्री गृह मन्त्री तथा मुख्य मन्त्री पद को सुशोभित किया । सन् 1962 ई० में राजस्थान के राज्यपाल पद को भी इन्होंने अलंकृत किया। सन्‌ 1967 ई० में राज्यपाल पद  से मुक्त हुए और काशी लौट आये। तब मृत्युपर्यन्त काशी विद्यांपीठ के कुलपति बने रहे। 10 जनवरी1969 में काशी में ही इनका निधन हो गया ।

साहित्यिक परिचय (Sahityik Parichay)

          डॉ० सम्पूर्णानन्द जी उच्च कोटि के दार्शनिक तथा श्रेष्ठ लेखक थे। ये हिन्दी साहित्याकाश के प्रकाशमान तेजपुंज थे। साहित्य, दर्शन और समाजवाद पर उत्तम कोटि के ग्रन्थों की रचना कर आपने हिन्दी साहित्य के भण्डार को समृद्ध किया। हिन्दी साहित्य सम्मेलन के उन्नतीसवें अधिवेशन में इन्होंने सभापति पद को सुशोभित किया था। समाजवाद ग्रन्थ पर आपको 1200 रू० का ‘मंगलाप्रसाद पारितोषिक’ प्राप्त हुआ था। आपके निबन्ध जिनमें इनके अध्ययन और चिन्तन की छाप है, हिन्दी साहित्य के लिए गौरव की वस्तु हैं। हिन्दी के गद्यकारों में आपका स्थान बहुत ऊँचा है।
 
          डॉ० सम्पूर्णानन्द जी को हिन्दी साहित्य संम्मेलन ने अपनी सर्वोच्च उपाधि ‘साहित्य वाचस्पति’ से अलंकृत किया। इन्होंने अनेक श्रेष्ठ साहित्यिक ग्रन्थों की रचना की। आपने सम्राट्‌ अशोक, सम्राट हर्षवर्धन, महादजी सिन्धिया तथा चेतसिंह आदि ऐतिहासिक व्यक्तियों एवं महात्मा गांधी, देशबन्धु चितरंजन दास जैसे कुछ आधुनिक महापुरुषों की जीवनियाँ भी लिखी हैं। 
        
         डॉ० सम्पूर्णानन्द गम्भीर विचारक और श्रेष्ठ लेखक थे। इनकी रचनाओं में इनके व्यक्तित्व और पाण्डित्य की छाप स्पष्ट दिखाई पड़ती है। वास्तव में इन्होंने उच्च कोटि के साहित्य की रचना की।

रचनाएँ (Rachnaye)

        डॉ० सम्पूर्णानन्द जी ने दो दर्जन से अधिक ग्रन्थों की रचना कीं है, जिनमें से प्रमुंख रचनाएँ निम्नलिखित हैं 
 
  • दार्शनिक ग्रन्थ:- चिद्विलास, दर्शन और जीवन। 
  • जीवनी:- देशबंन्धु चितरंजनदास, महात्मा गांधी आंदि। 
  • राजनीतिक तथा ऐतिहासिक ग्रन्थ:- अन्तर्राष्ट्रीय विधान, चीन की राज्यक्रान्ति, मिस्र की राज्यक्रान्ति समाजवाद, आर्यों का आदि देश, सम्राट हर्षवर्धन, भारत के देशी राज्य आदि। 
  • धार्मिक ग्रन्थ:- गणेश, नारदीय सूक्त की टीका, ब्राह्मण सावधान आदि। 
  • ज्योतिष ग्रत्थ:- सप्तर्षि तारामण्डल। 
           इन ग्रन्थों के अंतिरिक्तें आपने अनेक फुटकर निबन्धों की रचना भी की है। अँग्रेजी पत्र ‘टुडे’ तथा हिन्दी ‘मर्यादा’ का आपने सफलतापूर्वक सम्पादन किया।

भाषा-शैली (Bhasha-Shaili)

भाषा –  डॉ० सम्पूर्णानन्द जी स्वभाव से गम्भीर थे। उन्होंने गम्भीर विषयों पर ही लेखनी चलाई। अतः उनकी भाषा भी गम्भीर, संस्कृतनिष्ठ, शुद्ध खड़ी बोली हिन्दी है। भाषा में प्रवाह है और वह विषय के अनुसार परिवर्तनशील है। मुहावरों और कहावतों का प्रयोग उन्होंने बहुत कम किया है। कहीं-कहीं भावाभिव्यक्ति में ‘धर्म संकट में पड़ना’ जैसे सामान्य मुहावरों कां प्रयोग मिल जाता है । 
 
गद्य शैली – डॉ० सम्पूर्णानन्द गम्भीर विचारक और प्रौढ़ं लेखक थे। उनकी शैली में उनके व्यक्तित्व एंवं पाण्डित्य की छाप साफ दिखाई देती है । विषय प्रतिपादन की दृष्टि  से इनकी शैली के मुख्य तीन रूप देखने को मिलते हैं –
 
1. विचारात्मक शैली – सम्पूर्णानन्द जी ने अपने स्वतन्त्र मौलिक विचारों की अभिव्यक्ति में विचारात्मक शैली अपनायी है। इस शैली में भाषा प्रवाहपूर्ण एवं विषयानुकूल है। इसमें प्रवाह और ओज सर्वत्र पाया जाता है। तर्क और अकाट्य युक्तियों के द्वारा वे अपने विचार की पुष्टि करने का प्रयत्न करते हैं। एक उदाहरण प्रस्तुत हैं-
“सबके सामने आत्मज्ञान और अभेद दर्शन का आदर्श रहे, वैयक्तिक और सामूहिक जीवन का मूल मन्त्र परिचर्या की जगह सहयोग हो और सबको अपनी सहज योग्यताओं के विकास का अवसर मिले । यदि ऐसी व्यवस्था हो तो धर्म को स्वतः प्रोत्साहन और मुमुक्षा को अनुकूल वातावरण मिल जायेगा।” 
2. व्याख्यात्मक शैली –  सम्पूर्णानन्द जी जहाँ दार्शनिक विषयों का प्रतिपादन करते हैं, वहाँ व्याख्यात्मक शैली का प्रयोग करते हैं। सरल और संयत भाषा में वे अपने विषय को समझाने का प्रयत्न करते हैं । विषय- स्पष्टीकरण हेतु उदाहरणों का प्रयोग करते हैं।
उदाहरण देखिए –
“आत्मा अजर और अमर है। उसमे अनन्त ज्ञान-शक्ति और आनन्द का भण्डार है। अकेले ज्ञान कहना भी पर्याप्त हो सकता है, क्योंकि जहाँ ज्ञान होता है वहाँ शक्ति होती है, और जहाँ ज्ञान और शक्ति होती हैं वहाँ आनन्द भी होता है।”
3. ओजपूर्ण शैली – इस शैली का प्रयोग उनके मौलिक निबन्धों में हुआ है। इसमें ओज की प्रधानता पायी जाती है। वाक्यों का गठन अति सुन्दर है और भाषा का व्यावहारिक रूप देखने को मिलता है। 
निम्नलिखित उदाहरण देखिए- 
“तुलसी के सामने समस्त हिन्दू समाज के पुनर्जागरण और उसके दोषों के मार्जन तथा सुधार का लक्ष्य था। वे किसी के राज्याश्रित नहीं थे, किसी का उन पर प्रतिबन्ध नहीं था। इस भूमिका में रखकर देखने प्र उनके “स्वान्त: सुखाय’ को महत्त्व समझ में आता है।” 
संक्षेप में सम्पूर्णानन्द जी की शैली प्राण्डित्यपूर्ण तथा गम्भीर है। उसमें ओज गुण की प्रधानता है।

Here are frequently asked questions (FAQs) about Dr. Sampurnanand Ji Ka Jivan Parichay?

Q. डॉ० संपूर्णानन्द जी का पूरा नाम क्या था ?
पूरा नाम डॉ० संपूर्णानन्द हैं ।

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Q. डॉ० संपूर्णानन्द जी का जन्म कब हुआ था ?
डॉ० संपूर्णानन्द जी का जन्म 1 जनवरी 1890 में हुआ था ।

Q. डॉ० संपूर्णानन्द जी का जन्म कहाँ हुआ था ?
डॉ० संपूर्णानन्द जी का जन्म काशी, वाराणसी (उत्तर प्रदेश) में हुआ था ।

Q. डॉ० संपूर्णानन्द जी का माता का नाम क्या  था ?
डॉ० संपूर्णानन्द जी का माता का नाम आनंदी देवी था ।

Q. डॉ० संपूर्णानन्द जी का पिता का नाम क्या था ?
डॉ० संपूर्णानन्द जी का  पिता का नाम श्री विजयानन्द था ।

Q. डॉ० संपूर्णानन्द जी का शिक्षा क्या था ?
डॉ० संपूर्णानन्द जी का शिक्षा बी० एस-सी० (B.Sc), एल० टी०(L.T.) था ।

Q. डॉ० संपूर्णानन्द जी का पेशा किया था ?
डॉ० संपूर्णानन्द जी का अध्यापक, लेखक, साहित्यकार, स्वतंत्रता सेनानी, राजनेता पेशा था ।

Q. डॉ० संपूर्णानन्द जी का उल्लेखनीय कामक्या था ?
डॉ० संपूर्णानन्द जी का संपूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय की स्थापना की ।

Q. डॉ० संपूर्णानन्द जी का भाषा क्या था ?
डॉ० संपूर्णानन्द जी का भाषा शुद्ध, संस्कृतनिष्ट, गम्भीर, प्रवाहमयी, अनूठा शब्द चयन था ।

Q. डॉ० संपूर्णानन्द जी का शैली क्या था ?
डॉ० संपूर्णानन्द जी का शैली तीन हैं
(i). विचारात्मक शैली,
(ii). व्याख्यात्मक शैली,
(iii). ओजपूर्ण शैली

Q. डॉ० संपूर्णानन्द जी का रचनाएँ क्या था ?
डॉ० संपूर्णानन्द जी का रचनाएँ दार्शनिक ग्रन्थ, धार्मिक, राजनैतिक तथा ऐतिहासिक ग्रन्थ था ।

Q. डॉ० संपूर्णानन्द जी का राष्ट्रीयता क्या हैं ?
डॉ० संपूर्णानन्द जी का राष्ट्रीयता भारतीय हैं ।

Q. डॉ० संपूर्णानन्द जी का पार्टी क्या नाम था ?
डॉ० संपूर्णानन्द जी का पार्टी नाम भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस था ।

Q.डॉ० संपूर्णानन्द जी का पिछले कार्यालय क्या था ?
डॉ० संपूर्णानन्द जी का पिछले कार्यालय राजस्थान के राज्यपाल (1962-1967), उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री(1954-1960) था ।

Q.डॉ० संपूर्णानन्द जी का मृत्यु कब हुआ था ?
डॉ० संपूर्णानन्द जी का मृत्यु  10 जनवरी 1969 ई० को हुआ था ।

Q.डॉ० संपूर्णानन्द जी का मृत्यु स्थान क्या था ?
डॉ० संपूर्णानन्द जी का मृत्यु स्थान काशी, वाराणसी (उत्तर प्रदेश ) था ।

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