मीराबाई जी का स्मरणीय संकेत
नाम | जसोदा रॉव रतन सिंह राठौड़ |
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जन्म स्थान | सन् 1498 ई० चौकड़ी (मेवाड़) राजस्थान |
मृत्यु स्थान | सन् 1547 ई० द्वारका या वृन्दावन (मथुरा) उ०प्र० |
आयु | 49 वर्ष |
पति का नाम | भोजराज (1516-1521) |
पिता का नाम | रतन सिंह |
माता का नाम | वीर कुमारी |
भाषा | राजस्थानी, गुजराती, पंजाबी एवं ब्रजभाषा को अपनाकर अपने गीतों की रचना की |
भाषा शैली | इनकी शैली में हृदय की तन्मयता, लयात्मकता एवं संगीतात्मकता स्पष्ट रूप से देखने को मिलती है |
मुख्य रचनाएँ | ‘नीहार’ (1) नरसी जी का मायरा, (2) राग गोविन्द, (3) गीत गोविन्द की टीका, (4) राग-सोरठ के पद, (5) मीराबाई की मलार, (6) गरबा गीत, (7) राग विहाग तथा फुटकर पद |
नागरिकता | भारतीय |
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जीवन परिचय – मीराबाई (Mirabai)
जोधपुर के संस्थापक राव जोधाजी की प्रपौत्री, जोधपुर नरेश राजा रत्नसिंह की पुत्री और भगवान कृष्ण के प्रेम में दीवानी मीराबाई का जन्म राजस्थान के चौकड़ी नामक ग्राम में सन् 1498 ई. में हुआ था। बचपन में ही माता का निधन हो जाने के कारण ये अपने पितामह राव दूदा जी के पास रहती थीं और प्रारम्भिक शिक्षा भी उन्हीं के पास रहकर प्राप्त की थीं। राव दूदा जी बड़े ही धार्मिक एवं उदार प्रवृत्ति के थे, जिनका प्रभाव मीराबाई के जीवन पर पूर्णरूपेण पड़ा था। आठ वर्ष की मीरा ने कब श्रीकृष्ण को पति रूप में स्वीकार लिया, यह बात कोई नहीं जान सका। इनका विवाह चित्तौड़ के महाराजा राणा साँगा के ज्येष्ठ पुत्र भोजराज के साथ हुआ था। विवाह के कुछ वर्ष बाद ही मीरा विधवा हो गयीं। अब तो इनका सारा समय श्रीकृष्ण भक्ति में ही बीतने लगा। मीरा श्रीकृष्ण को अपना प्रियतम मानकर उनके विरह में पद गातीं और साधु-सन्तों के साथ कीर्त्तन एवं नृत्य करतीं । इनके इस प्रकार के व्यवहार ने परिवार के लोगों को रुष्ट कर दिया और उन्होंने मीरा की हत्या करने का कई बार असफल प्रयास किया।
अन्त में राणा के दुर्व्यवहार से दुःखी होकर मीराबाई वृन्दावन चली गयीं। मीरा की कीर्ति से भावित होकर राणा ने अपनी भूल पर पश्चाताप किया और इन्हें वापस बुलाने के लिए कई सन्देश भेजे; परन्तु मीरा सदा के लिए सांसारिक बन्धनों को छोड़ चुकी थीं। कहा जाता है, कि मीरा एक पद की पंक्ति ‘हरि तुम हरो जन की पीर‘ गाते-गाते भगवान् श्रीकृष्ण की मूर्ति में विलीन हो गयी थीं। मीराबाई की मृत्यु द्वारका में सन् 1546 ई. के आस-पास हुई थी।
मीराबाई का साहित्यिक सेवाएँ (Mirabai Ka Sahityik Parichay)
मीराबाई के काव्य का मुख्य स्वर कृष्ण-भक्ति है। इनके काव्य में इनके हृदय की सरलता तथा निश्छलता स्पष्ट रूप प्रकट होती है। इनकी भक्ति-साधना ही इनकी काव्य-साधना है। दाम्पत्य – प्रेम के रूप में व्यक्त इनके सम्पूर्ण काव्य में, इनके हृदय के मधुर भाव गीत बनकर बाहर उमड़ पड़े हैं। विरह की स्थिति में इनके वेदनापूर्ण गीत अत्यन्त हृदयस्पर्शी बन पड़े हैं। इनका प्रत्येक पद सच्चे प्रेम की पीर से परिपूर्ण है। भाव-विभोर होकर गाये गये तथा प्रेम एवं भक्ति से ओत-प्रोत इनके गीत; आज भी तन्मय होकर गाये जाते हैं। कृष्ण के प्रति प्रेमभाव की व्यञ्जना ही इनकी कविता का उद्देश्य रहा है।
मीराबाई का रचनाएँ(Mirabai Ka Rachnaye)
मीराबाई की रचनाओं में इनके हृदय की विह्वलता देखने को मिलती है।
इनके नाम से सात-आठ रचनाओं के उल्लेख मिलते हैं—(1) नरसी जी का मायरा, (2) राग गोविन्द, (3) गीत गोविन्द की टीका, (4) राग-सोरठ के पद, (5) मीराबाई की मलार, (6) गरबा गीत, (7) राग विहाग तथा फुटकर पद। इनकी प्रसिद्धि का आधार ‘मीरा पदावली‘ एक महत्त्वपूर्ण कृति है।
मीराबाई का भाषा-शैली(Mirabai Ka Bhasha-Shaili)
मीराबाई ने ब्रजभाषा को अपनाकर अपने गीतों की रचना की। इनके द्वारा प्रयुक्त इस भाषा पर राजस्थानी, गुजराती एवं पंजाबी भाषा की स्पष्ट छाप परिलक्षित होती है। इनकी काव्य-भाषा अत्यन्त मधुर, सरस और प्रभावपूर्ण है। इनके सभी पद गेय हैं। इन्होंने गीतिकाव्य की भावपूर्ण शैली अथवा मुक्तक शैली को अपनाया है। इनकी शैली में हृदय की तन्मयता, लयात्मकता एवं संगीतात्मकता स्पष्ट रूप से देखने को मिलती है ।
पदावली
बसो मेरे नैनन में नंदलाल |
मोर मुकुट मकराकृत कुण्डल, अरुण तिलक दिये भाल ।।
मोहनि मूरति साँव सूरति, नैना बने बिसाल।
अधर-सुधा-रस मुरली राजत, उर बैजंती – माल।।
छुद्र घंटिका कटि-तट सोभित, नूपुर सब्द रसाल ।
मीरा प्रभु संतन सुखदाई, भक्त बछल गोपाल ।।१
पायो जी म्हैं तो राम रतन धन पायो ।
वस्तु अमोलक दी मेरे सतगुरु, किरपा कर अपनायो ।।
जनम-जनम की पूंजी पाई, जग में सभी खोवायो ।
खरचै नहिं कोइ चोर न लेवै, दिन दिन बढ़त सवायो ।।
सत की नाव खेवाटेया सतगुरु, भव-सागर तर आयो ।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, हरख-हरख जस गायो ।। २
माई री मैं तो लियो गोविन्दो मोल ।
कोई कहै छाने कोई कहे चुपके, लियो री बजन्ता ढोल ।।
कोई कहै मुँहघो कोई कहै सुँहघो, लियो री तराजू तोल ।
कोई कहै कारो कोई कहै गोरो, लियो री अमोलक मोल ।।
याही कूँ सब जाणत हैं, लियो री आँखी खोल ।
मीरा कूँ प्रभु दरसण दीन्यौ, पूरब जनम कौ कौल ।। ३
मैं तो साँवरे के रंग राची ।
साजि सिंगार बाँधि पग घुंघरू, लोक-लाज तजि नाँची ।।
गयी कुमति लई साधु की संगति, भगत रूप भई साँची ।
गाय-गाय हरि के गुण निसदिन, काल ब्याल सूँ बाँची ।।
उण बिन सब जग खारो लागत, और बात सब काँची ।
मीरा श्री गिरधरन लाल सूँ, भगति रसीली जाँची ।। ४
मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई ।
जाके सिर मोर मुकुट, मेरो पति सोई ।
तात मात भ्रात बन्धु, आपनो न कोई ।।
छाँड़ि दई कुल की कानि, कहा करिहै कोई ।
संतन ढिंग
बैठि-बैठि, लोक लाज खोई ।।
अँसुवन जल
सींचि-सींचि, प्रेम बेलि बोई ।
अब तो बेल फैल गयी, आणंद फल होई ।।
भगति देखि राजी हुई, जगत देखि रोई ।
दासी मीरा लाल गिरधर, तारो अब मोई ।।५
(“मीराबाई सुधा-सिन्धु”)
Frequently Asked Questions (FAQs) About Mirabai Ji Ka Jeevan Parichay
Q. मीराबाई की दो शिक्षाएं क्या हैं ?
मीराबाई जी जाति पदानुक्रम में विश्वास कभी नहीं करती थी, क्योकि उसी के बजाय उच्च जाति मानकों पर हमला करती थी । मीराबाईजी भगवान श्री कृष्ण जी के प्रति उनकी अधिक भक्ति के कारण वह राज्य छोड़कर चल गई।
Q. मीरा के काव्य की सबसे बड़ी विशेषता क्या है ?
इनकी भक्ति-साधना ही इनकी काव्य-साधना है। गीत काव्य के सभी विशेषताएं आत्माभिव्यक्ति, संक्षिप्तता, तीव्रता, संगीतात्मकता, भावात्मकता आदि |
Q. मीराबाई का महत्व क्या है ?
मीराबाई जी ने भागवान श्री कृष्णा जी पर 1350 अधिक कविताये लिखीं हैं , मीराबाई जी ने भक्ति आंदोलन काल के सबसे महत्वपूर्ण कवि-संत के रूप में व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है |
Q. मीराबाई ने क्या पाया ?
मीराबाई जी ने राम रतन धन पाया |
Q. मीरा क्यों दुखी हैं ?
मीराबाई जी अपने जगत के व्याप्त लोगो से माया एवं धंधो में फँसे लोगो को देखकर रोने लगती थी |
Q. मीराबाई ने कितनी कविताएं लिखी हैं ?
लगभग 1350 से अधिक कविताएं लिखी है |
Q. मीराबाई जी किसका अवतार थी ?
मीराबाई जी श्री कृष्ण जी की अवतार थी, और कृष्ण जी से मिलाने के लिए तड़प रही थी, और वह अपना प्राण त्याग दी|
Q. मीराबाई का असली नाम क्या है ?
जसोदा रॉव रतन सिंह राठौड़
Q. क्यों मीराबाई ने जहर पिया था ?
शादी के मीराबाई पति की मृत्यु हो जाती हैं, मीरा जी भागवान श्री कृष्ण जी में भक्ति हो जाती हैं, राणा ने मीरा को मरने के लिए एक पियाले में जहर भेजा तभी भी मीरा जी ने हँसकर पी लिया , लेकिन भागवान कृष्ण की लीला उन्हें कुछ भी नही हुआ |
Q. मीराबाई की प्रमुख रचनाएं कौन कौन-सी हैं ?
‘नीहार’ (1) नरसी जी का मायरा, (2) राग गोविन्द, (3) गीत गोविन्द की टीका, (4) राग-सोरठ के पद, (5) मीराबाई की मलार, (6) गरबा गीत, (7) राग विहाग तथा फुटकर पद ।
Q. मीरा कृष्ण से प्यार क्यों करती थी ?
भागवन श्री कृष्ण जी मूर्ति को नहलाना, उनको वस्त्र से सजाना, खाने से पहले भोग लगाना श्री कृष्ण की मन खो जाना उनकी गीत गाना यही काम था | इसलिए इन्हे श्री कृष्ण जी से अधिक प्यार करती थी |
Q. राधा और मीरा के प्रेम में क्या अंतर है ?
राधा जी कृष्ण आह्लादिनी शक्तिजी हैं, वही मीरा श्री कृष्ण जी भक्त थी |
Q. राधा रानी किसकी पत्नी थी ?
भोजराज
Q. मीराबाई का जीवन परिचय कैसे लिखें ?
मुख्य पृष्ट पर जाये
Q. मीरा जी का जन्म और स्थान कहा हैं ?
सन् 1498 ई० चौकड़ी (मेवाड़) राजस्थान |
Q. मीरा जी का मृत्यु और स्थान कहा हैं ?
सन् 1547 ई० द्वारका या वृन्दावन (मथुरा) उ०प्र०|
Q. मीरा जी का पिता का नाम क्या हैं ?
रतन सिंह
Q. मीरा जी का माता का नाम क्या हैं ?
वीर कुमारी
Q. मीरा जी का भाषा शैली क्या हैं ?
इनकी शैली में हृदय की तन्मयता, लयात्मकता एवं संगीतात्मकता स्पष्ट रूप से देखने को मिलती है ।
Q. मीरा जी का भाषा क्या हैं ?
राजस्थानी, गुजराती, पंजाबी एवं ब्रजभाषा को अपनाकर अपने गीतों की रचना की।
Q. मीरा जी का नागरिकता कहा हैं ?
भारतीय
Q. मीरा पति का नाम क्या हैं ?
भोजराज भोजराज