सरदार पूर्णसिंह जी का स्मरणीय संकेत
पूरा नाम | सरदार पूर्ण सिंह |
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जन्म | 17 फ़रवरी 1881 ई० |
जन्म स्थान | गाँव सलह्द, जिला एबटाबाद, पश्चिम सीमा प्रान्त (अब पाकिस्थान में हैं) |
पिता का नाम | सरदार करतार सिंह |
शिक्षा | बी० एस० सी० तक |
रचनाएं | केवल छः निबन्ध |
भाषा-शैली | भाषा – सरल, सरस खड़ीबोली, आम बोलचाल के उर्दू, फारसी शब्द शैली –1. विचारात्मक,2. वर्णनात्मक, 3. भावात्मक तथा 3. उध्दरण शैली |
पत्नी का नाम | माया देवी |
नागरिकता | भारतीय |
मृत्यु | 31 मार्च 1931 |
मृत्यु स्थान | देहरादून,(उत्तराखंड) |
सरदार पूर्णसिंह – जीवन परिचय
सुप्रसिध्द निबन्धकार सरदार पूर्णसिंह का जन्म सन् 17 फ़रवरी 1881 ई० में गाँव सलह्द, जिला एबटाबाद,पश्चिम सीमा प्रान्त में(अब पाकिस्थान में) नामक स्थान पर हुआ था | इनके पिता सरकारी कर्मचारी थे । बालक पूर्णसिंह ने रावलपिंडी से मैट्रिक परीक्षा पास की और फिर उच्च शिक्षा के लिए लाहौर(अब पाकिस्तान में) चले गये। वहाँ इण्टरमीडिएट परीक्षा पास करते ही इन्हें जापान जाकरें पढ़ने के लिए सरकारी छांत्रवत्ति स्वीकृत हो गयी। जापान में टोकियो की इम्पीरियल झून्तिवर्सिटी में जाकर इन्होंने रसायन शास्त्र का अध्ययन किया और तीन वर्षों तक अध्ययन कर ग्रेजुएट हो गये।
जापान में रहते हुए ही स्वामी रामतीर्थ के व्याख्यानों से प्रभावित होकर इन्होंने संन्यास ले लिया स्वदेश आकर वे इम्पीरियल फोरेस्ट इन्स्टीट्यूट, देहरादून में रसायन शास्त्र के अध्यापक हो गंये। तभी से इनके नाम के साथ अध्यापक शब्द जुड़ गया।
कुछ समय पश्चात् इनके विचारों ने पलटा खाया. और तब आपने संन्यास छोड़कर विवाह कर लिया परन्तु गृहस्थी होकर भी आध्यात्मिकता और संयम दोनों उनमें बने रहे। उदार वे इतने थे कि वेतन का सारा धन गरीबों की सहायता में बॅंट जाता था। इन्स्टीट्यूट में कुछ झंगड़ा हो जाने के कारण इन्होंने नौकरी से त्याग-पत्र दे दिया और ग्वालियर चले गये। वहाँ पर भी मेन नहीं लगा तो ‘जड़वाला’ नामक गाॅंव में जाकर खेती करने लगे। इनके जीवन का अन्तिम समय गरीबी और दुःखों में बीता। सन् 31 मार्च 1931 को देहरादून,(उत्तराखंड) में वे इस लोक से विदा हो गये |
सरदार पूर्णसिंह की रचनाएँ(Sardar Purnsingh Ki Rachnaye)
सरदार पूर्णसिंह ने केवल निम्नलिखित छः निबन्धों की रचना की, जो ‘सरस्वती’ पत्रिका में प्रकाशित हुए थे –
- मजदूरी और प्रेम,
- आचरण की सभ्यता,
- नयनों की गंगा,
- पवित्रता,
- अमेरिका का मस्त जोगी-वाल्ट ह्विटमैन,
- कन्यादान
सरदार पूर्णसिंह की साहित्यिक परिचय(Sardar Purnsingh Ki Sahityik Parichay)
अध्यापक पुर्णसिंह ने केवल छः निबन्धों की रचना की।इन छः निबन्धों के बल पर ही वे हिन्दी जगत में अमर हो गये। वास्तव में किसी लेखक की महानता की पहचान उसकी कृतियों की भरमार से नहीं होती, बल्कि इससे होती है कि उसने कैसा लिखा है। सरदार पूर्णसिंह ऐसे साहित्यकार थे जिन्होंने छः निबन्ध लिखकर ही अपनी महत्ता सिद्ध कर दी। कुछ लेखक ऐसे भी होते हैं जो लिखते तो बहुत कम हैं परन्तु वे जो कुछ लिखते हैं, वही दूसरों के लिए आदर्श बन जाता है। जिस प्रकार गुलेरी जी केवल तीन कहानियाँ लिखकर श्रेष्ठ कहानीकार बन गये और बिहारी केवल सात सौ दोहे लिखकर रीतिकाल के सर्वश्रेष्ठ कवि वन गये, उसी प्रकार अध्यापक पूर्णसिंह केवल छ: निबन्धों की रचना करके उच्च कोटि के निबन्धकार बन गये। इस विषय में डॉ० जगन्नाथ शर्मा का कथन ध्यान देने योग्य है-
“सरदार पूर्णसिंह अध्यापक की स्चनाद वह कम हैं, परन्तु कम होना असामर्थ्य का प्रमाण नहीं, क्योंकि कुछ लोग ऐसे होते हैं कि लिखते बहुत कम हैं परन्तु उतने ही में अपनी उद्भावना शक्ति एवं प्रतिभा का पूर्ण परिचय दे देते हैं।”
सरदार पूर्णसिंह के निबन्ध भावात्मक कोटि के हैं, उनमें भावावेग के साथ विचारों के सूत्र भी पिरोये गये हैं। वे अपने मूल विषय से हट कर उससे सम्बन्धित अन्य विषयों की चर्चा करने लगते हैं और बहुत दूर तक भटक जाते हैं परन्तु फिर स्वयं ही सफाई देते हुए मूल विषय पर लौट आते हैं। विभिन्न उद्धरणों द्वारा अपनी बात को पुष्ट करना इनके निबन्धों की अपनी विशेषता है।
सरदार पूर्णसिंह की विचारधारा व्यापक और मानव कल्याण की भावना से ओत-प्रोत हैं। उनके व्यक्तित्व की छाप इनके निबन्धों में भी प्रतिबिम्बित होती है। इनके निबन्ध इनकी मनोलहरी से जुड़े हैं। इन्हें सच्चे अर्थों में आत्मव्यंजक निबन्धकार कहा जा सकता है। हिन्दी निबन्धकारों में इनका स्थान बहुत ऊँचा है।
सरदार पूर्णसिंह की भाषा-शैली (Bhasha-Shaili)
भाषा (Bhasha)
सरदार पूर्णसिंह की भाषा सरल, सरस खड़ीबोली है जिसमें संस्कृत के तत्सम शब्दों का अधिक प्रयोग है। आम बोलचाल के उर्दू-अँग्रेजी शब्दों का भी इन्होंने निःसंकोच प्रयोग किया है। विषय के अनुसार इनकी भाषा का रूप बदलता रहता है। कहीं वाक्य छोटे-छोटे होते हैं तो कहीं-कहीं लम्बे-लग्बे वाक्यों का प्रयोग देखने को मिलता है। मुहावरों और कहावतों के प्रयोग से भाषा अधिक. प्रभावपूर्ण तथा सशक्त हो गयी है। साधारण वाक्यों से कई वाक्यों को जोड़कर लिखने का इनका अनोखा ढंग हैं।
शैली (Shaili)
‘शैली ही लेखक का व्यक्तित्व है’–यह उक्ति सरदार पूर्णसिंह की शैली में पूर्णतया चरितार्थ होती है। इनकी शैली के निम्नलिखित रूप पाये जाते हैं-
- विचारात्मक शैली- जहाँ गम्भीर विषय पर विचार किया गया है, वहाँ विचारात्मक शैली का प्रयोग किया गया है।इस शैली में भाषा संस्कृतनिष्ठं और वाक्य लम्बे हो गये हैं।
- वर्णनात्मक शैली- जहाँ किसी विषय या वस्तु का परिचय दिया गया है, वहाँ वर्णनात्मक शैली का प्रयोग किया गया है। इस शैली में वाक्य छोटे-छोटे तथा भाषा. सरल है। उर्दू शब्दों तथा लोकोक्तियों के प्रयोग से भाषा अधिक सशक्त हो गयी है।
- भावात्मक शैली- इस शैली में भाषा काव्यमयी हो गयी है। आध्यात्मिक विचारधारा होने के कारण इस इस शैली में रहस्यात्मक कथन भी मिलते हैं।
- उद्धरण शैली- कहीं-कहीं अपने कथन को पुष्ट करने के लिए तथा कहीं-कहीं रोचकता लाने के लिए सरदार पूर्णसिंह ने उर्दू कवियों की कविताओं के उद्धरण भी दिये हैं।
शैलीगत विशेषताएँ (Shailigat Visheshtaye)
सरदार पूर्णसिंह ने समास शैली का प्रयोग किया है। वे पहले किसी बात को सूत्र रूप में कह देते हैं, फिर उसकी विशेष व्याख्या करते हैं। विषय गम्भीर होते हुए भी उनकी शैली में रोचकता है, पाठक ऊब नहीं पाता है। कहीं-कहीं ये विशेष व्यंग्य कसते हैं और विनोद की चुस्की लेते हैं। उदाहरण प्रस्तृत है-
“पुस्तकों में लिखे नुस्खों से तो और भी अधिक बदहजमी हो जाती है। सारे वेद और शास्त्र भी यदि घोलकर पी लिए जायें तो भी आदर्श-आचरण की प्राप्ति नहीं होगी।”
Here are frequently asked questions (FAQs) about Sardar Purn Singh Ka Jivan Parichay
Q. सरदार पूर्णसिंह जी का पूरा नाम क्या था?
सरदार पूर्णसिंह
Q. सरदार पूर्णसिंह जी का जन्म कब हुआ था?
सरदार पूर्णसिंह जी का जन्म 17 फ़रवरी 1881 ई० में हुआ था।
Q. सरदार पूर्णसिंह जी का जन्म कहा हुआ था?
गाँव सलह्द, जिला एबटाबाद,पश्चिम सीमा प्रान्त (अब पाकिस्थान में) नामक स्थान पर हुआ था।
Q. सरदार पूर्णसिंह जी का मृत्यु कब हुआ था?
सरदार पूर्णसिंह जी का 31 मार्च 1931 ई० में हुआ था।
Q. सरदार पूर्णसिंह जी का मृत्यु कहा हुआ था?
सरदार पूर्णसिंह जी का देहरादून,(उत्तराखंड) नामक स्थान पर हुआ था।
Q. सरदार पूर्णसिंह जी का पिता का नाम क्या था?
सरदार पूर्णसिंह जी का पिता का नाम सरदार करतार सिंह था।
Q. सरदार पूर्णसिंह जी का जीवन परिचय किया है?
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Q. सरदार पूर्णसिंह जी का रचनाएँ क्या हैं?
सरदार पूर्णसिंह जी का केवल छः निबन्ध है –
- मजदूरी और प्रेम,
- आचरण की सभ्यता,
- नयनों की गंगा,
- पवित्रता,
- अमेरिका का मस्त जोगी-वाल्ट ह्विटमैन,
- कन्यादान
Q. सरदार पूर्णसिंह जी का साहित्यिक परिचय क्या हैं?
अध्यापक पुर्णसिंह ने केवल छः निबन्धों की रचना की।इन छः निबन्धों के बल पर ही वे हिन्दी जगत में अमर हो गये। वास्तव में किसी लेखक की महानता की पहचान उसकी कृतियों की भरमार से नहीं होती, बल्कि इससे होती है कि उसने कैसा लिखा है। सरदार पूर्णसिंह ऐसे साहित्यकार थे जिन्होंने छः निबन्ध लिखकर ही अपनी महत्ता सिद्ध कर दी। कुछ लेखक ऐसे भी होते हैं जो लिखते तो बहुत कम हैं परन्तु वे जो कुछ लिखते हैं, वही दूसरों के लिए आदर्श बन जाता है। जिस प्रकार गुलेरी जी केवल तीन कहानियाँ लिखकर श्रेष्ठ कहानीकार बन गये और बिहारी केवल सात सौ दोहे लिखकर रीतिकाल के सर्वश्रेष्ठ कवि वन गये, उसी प्रकार अध्यापक पूर्णसिंह केवल छ: निबन्धों की रचना करके उच्च कोटि के निबन्धकार बन गये।
Q. सरदार पूर्णसिंह जी का भाषा क्या हैं?
सरदार पूर्णसिंह की भाषा सरल, सरस खड़ीबोली है जिसमें संस्कृत के तत्सम शब्दों का अधिक प्रयोग है। आम बोलचाल के उर्दू-अँग्रेजी शब्दों का भी इन्होंने निःसंकोच प्रयोग किया है। विषय के अनुसार इनकी भाषा का रूप बदलता रहता है। कहीं वाक्य छोटे-छोटे होते हैं तो कहीं-कहीं लम्बे-लग्बे वाक्यों का प्रयोग देखने को मिलता है। मुहावरों और कहावतों के प्रयोग से भाषा अधिक. प्रभावपूर्ण तथा सशक्त हो गयी है। साधारण वाक्यों से कई वाक्यों को जोड़कर लिखने का इनका अनोखा ढंग हैं।
Q. सरदार पूर्णसिंह जी का शैली क्या हैं?
शैली (Shaili) – ‘शैली ही लेखक का व्यक्तित्व है’–यह उक्ति सरदार पूर्णसिंह की शैली में पूर्णतया चरितार्थ होती है। इनकी शैली के निम्नलिखित रूप पाये जाते हैं-
- विचारात्मक शैली- जहाँ गम्भीर विषय पर विचार किया गया है, वहाँ विचारात्मक शैली का प्रयोग किया गया है।इस शैली में भाषा संस्कृतनिष्ठं और वाक्य लम्बे हो गये हैं।
- वर्णनात्मक शैली- जहाँ किसी विषय या वस्तु का परिचय दिया गया है, वहाँ वर्णनात्मक शैली का प्रयोग किया गया है। इस शैली में वाक्य छोटे-छोटे तथा भाषा. सरल है। उर्दू शब्दों तथा लोकोक्तियों के प्रयोग से भाषा अधिक सशक्त हो गयी है।
- भावात्मक शैली- इस शैली में भाषा काव्यमयी हो गयी है। आध्यात्मिक विचारधारा होने के कारण इस इस शैली में रहस्यात्मक कथन भी मिलते हैं।
- उद्धरण शैली– कहीं-कहीं अपने कथन को पुष्ट करने के लिए तथा कहीं-कहीं रोचकता लाने के लिए सरदार पूर्णसिंह ने उर्दू कवियों की कविताओं के उद्धरण भी दिये हैं।
Q. सरदार पूर्णसिंह जी का शैलीगत विशेषताएँ क्या है?
सरदार पूर्णसिंह ने समास शैली का प्रयोग किया है। वे पहले किसी बात को सूत्र रूप में कह देते हैं, फिर उसकी विशेष व्याख्या करते हैं। विषय गम्भीर होते हुए भी उनकी शैली में रोचकता है, पाठक ऊब नहीं पाता है। कहीं-कहीं ये विशेष व्यंग्य कसते हैं और विनोद की चुस्की लेते हैं। उदाहरण प्रस्तृत है-
“पुस्तकों में लिखे नुस्खों से तो और भी अधिक बदहजमी हो जाती है। सारे वेद और शास्त्र भी यदि घोलकर पी लिए जायें तो भी आदर्श-आचरण की प्राप्ति नहीं होगी।”
Q. सरदार पूर्णसिंह जी का शिक्षा क्या है?
सरदार पूर्णसिंह जी का शिक्षा बी०एस०सी० तक है।
Q. सरदार पूर्णसिंह जी का किस देश के थे?
सरदार पूर्णसिंह जी का भारत देश के थे।
Q.सरदार पूर्णसिंह जी का पत्नी का नाम क्या था?
सरदार पूर्णसिंह पत्नी का नाम माया देवी था।